रूपलावण्यबलवज्रसंहननत्वानि कायसम्पत् ॥ ३.४६॥
अणिमा आदि अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति के साथ शरीर में एक विशेष सामर्थ्य का प्रादुर्भाव होता है, महर्षि उसी विशेष सामर्थ्य के विषय में इस सूत्र के माध्यम से बता रहे हैं |
काय सम्पत् का अर्थ होता है शरीर में विशेष सामर्थ्य से युक्त हो जाना | जब योगी पञ्च महाभूतों पर संयम करके विजय प्राप्त कर लेता है तो उसे रूप, लावण्य, बल और वज्र संहननत्वानि जैसी ५ शरीर सम्बन्धी विशेष सामर्थ्य प्राप्त हो जाता है |
आईये एक बार शरीर से सम्बंधित इन विशेष सामर्थ्य को समझते हैं-
रूप- शरीर का विशेष रूप से रूपवान हो जाना
लावण्य: योगी के शरीर में एक विशेष प्रकार की तेजस्विता आ जाती है | एक विशेष प्रकार की चमक योगी के पुरे शरीर में दिखाई देने लग जाती है |
बल: हमारे वेदों में कहा गया है, अश्मा भवतु नस्तनु: | अतः योगी के शरीर में अतुलित बल आ जाता है | हनुमान चालीसा का पाठ करते समय एक वाक्य आता है- राम दूत अतुलित बल धामा, अंजनी पवन सुत नामा |
वज्र संहननत्वानि – हमारे शरीर वज्र अर्थात पत्थर की भांति कठोर हों | पञ्च महाभूतों के ऊपर संयम करके योगी का शरीर पत्थर की भांति कठोर हो जाता है | यहाँ पत्थर की भांति कठोर से तात्पर्य है सामान्य से बहुत अधिक कठोर हो जाना |
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