Chapter 3 : Vibhooti Pada
|| 3.46 ||

रूपलावण्यबलवज्रसंहननत्वानि कायसम्पत् 


पदच्छेद: रूप-लावण्य-बल-वज्र-संहननत्वानि,कायसम्पत् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • रूप-सुन्दरता
  • लावण्य-चमक, कांति, दीप्ति एवं तेजस्विता
  • बल-विशेष शक्ति युक्त, शक्तिशाली
  • वज्र-पत्थर की तरह कठोर
  • संहननत्वानि-के समान सुदृढ़ या सुगठित हो जाता है
  • कायसम्पत्-शरीर की सम्पदा या सम्पत्ति कहलाती है

English

  • roopa - beauty
  • lavanya - charm
  • bala - strength
  • vajra - adamantine
  • sanhananatvani - hardness
  • kaya - body
  • sampat - perfection.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: पञ्च महाभूतों में संयम करने के बाद योगी को ऐश्वर्य स्वरुप रूप, लावण्य, बल एवं सुदृढ़ शरीर रूपी शरीर की संपत्ति प्राप्त होती है । इस सिद्धि को कायसम्पत् नाम से कहा गया है

Sanskrit: 

English: The glorification of the body consists in beauty, complexion, strength and adamantine hardness.

French:

German: Vollkommenheit des Körpers bedeutet, dass die Gliedmaßen ihre optimale Form erlangen, Ausstrahlung sich entfaltet, Kraft gedeiht und die Widerstandsfähigkeit steigt.

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Yog Sutra 3.46

Explanation/Sutr Vyakhya

  • Hindi
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  • Yog Kavya

रूपलावण्यबलवज्रसंहननत्वानि कायसम्पत् ॥ ३.४६॥

अणिमा आदि अष्ट सिद्धियों की प्राप्ति के साथ शरीर में एक विशेष सामर्थ्य का प्रादुर्भाव होता है, महर्षि उसी विशेष सामर्थ्य के विषय में इस सूत्र के माध्यम से बता रहे हैं  |

काय सम्पत् का अर्थ होता है शरीर में विशेष सामर्थ्य से युक्त हो जाना | जब योगी पञ्च महाभूतों पर संयम करके विजय प्राप्त कर लेता है तो उसे रूप, लावण्य, बल और वज्र संहननत्वानि जैसी ५ शरीर सम्बन्धी विशेष सामर्थ्य प्राप्त हो जाता है | 

आईये एक बार शरीर से सम्बंधित इन विशेष सामर्थ्य को समझते हैं-

रूप- शरीर का विशेष रूप से रूपवान हो जाना

लावण्य: योगी के शरीर में एक विशेष प्रकार की तेजस्विता आ जाती है | एक विशेष प्रकार की चमक योगी के पुरे शरीर में दिखाई देने लग जाती है |

बल: हमारे वेदों में कहा गया है, अश्मा भवतु नस्तनु: | अतः योगी के शरीर में अतुलित बल आ जाता है | हनुमान चालीसा का पाठ करते समय एक वाक्य आता है- राम दूत अतुलित बल धामा, अंजनी पवन सुत नामा |

वज्र संहननत्वानि – हमारे शरीर वज्र अर्थात पत्थर की भांति  कठोर हों | पञ्च महाभूतों के ऊपर संयम करके योगी का शरीर पत्थर की भांति कठोर हो जाता है | यहाँ पत्थर की भांति कठोर से तात्पर्य है सामान्य से बहुत अधिक कठोर हो जाना |

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One thought on “3.46”

  1. Vishnu Raut says:

    Very informative site, which I refer frequently. Thanks

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