उदानजयाज्जलपङ्ककण्टकादिष्वसङ्ग उत्क्रान्तिश्च ॥ ३.३९॥
पञ्च प्राणों में से उदान नामका प्राण को वश में कर लेने से या विजय प्राप्त कर लेने से योगी के ऊपर पानी, कीचड़ रूपी दलदल एवं काँटों का असर ख़त्म सा हो जाता है |
पञ्च प्राणों के नाम :
प्राण
अपान
समान
उदान
व्यान
इनमें से जो उदान नामक प्राण है उसका मुख्य कार्य है शरीर को हल्का बनाना और उसे उर्ध्व गामी बनाना | जब योगी प्राणायाम के विशेष अभ्यास से उभार में दान प्राण को जीत लेता है तो उसका शरीर बहुत हल्का या भार की दृष्टि से सूक्ष्म हो जाता है | जो वस्तु भार में हल्की और भीतर से खाली होती है वह आसानी से पानी मेर तैरने लग जाती है | इसी प्रकार से योगी का शरीर उदान पर विजय प्राप्त करने के बाद भार में हल्का और भीतर से आकाश तत्त्व के कारण खाली हो जाता है जिस कारण से पानी में उसका शरीर डूबता नहीं है | अलग अलग आसनों के लम्बे अभ्यास से आज भी बहुत सारे योगी जल में निर्भार होकर तैरते हैं |
दूसरी बात है की उदान प्राण पर विजय प्राप्त करने के बाद योगी कीचड़ में नहीं फंसता हैकी और उसे कांटे भी नहीं चुभते हैं | इसका भी वैज्ञानिक पक्ष यही है कि योगी का शरीर उदान प्राण को विजय प्राप्त करने के बाद उर्ध्व गामी हो जाता है जिससे जब कीचड़ और काँटों के ऊपर शरीर को रखा जाता है तो शरीर का भार नीचे की और दवाब न बनाकर सूक्ष्म रूप से ऊपर की ओर उठा हुआ होता है | क्योंकि उदान प्राण का कार्य ही है जो शरीर को सूक्ष्म भार की ओर ले जाये और साथ ही शरीर को ऊपर की ओर उठाये इसलिए ऐसा होना लम्बे अभ्यास से संभव होता है |
महाभारत में भीष्म पितामह का बाणों की शैया पर महीने भर तक लेटे रहना इन्हीं उदान प्राणों के ऊपर विजय का सिद्धि रूप फल है |