Hindi: बुद्धि आदि जड़ पदार्थो और आत्मा-जीवात्मा दोनों को पृथक-पृथक मानने वाले योगी का सभी वर्तमान पदार्थों पर अधिकार हो जाता है और उसे सभी पदार्थों का ज्ञान हो जाता है ।सत्त्वपुरुषान्यताख्यातिमात्रस्य सर्वभावाधिष्ठातृत्वं सर्वज्ञातृत्वं च
पदच्छेद: सत्त्व-पुरुष-अन्यता-ख्यातिमात्रस्य, सर्व-भाव-अधिष्ठातृत्वम् , सर्व-ज्ञातृत्वम् ॥
शब्दार्थ / Word Meaning
Hindi
- सत्त्व-बुद्धि
- पुरुष -आत्मा-जीवात्मा को
- अन्यता-पृथक-पृथक
- ख्यातिमात्रस्य-जानने वाले को
- सर्व -सभी
- भाव-विद्यमान पदार्थों पर
- अधिष्ठातृत्वम् -नियंत्रण प्राप्त हो जाता है
- च-और
- सर्व-सभी पदार्थों का
- ज्ञातृत्वम् -ज्ञान हो जाता है
English
- sattva - purest aspect of buddhi
- purusha - pure consciousness
- anyata - discernment, difference
- khyati - through knowledge
- matrasy - only
- sarva - over all
- bhava - beings
- adhishthatritvam - supermacy
- sarvajnatritvan - omniscience
- cha - and.
सूत्रार्थ / Sutra Meaning
योग के मार्ग पर जब योगी आगे बढ़ता है तो धीरे-धीरे संयम द्वारा उसकी इंद्रियों एवं पांच महाभूतों पर जो वशता प्राप्त होती है उसके फलस्वरूपअनेक प्रकार की सिद्धियां भी साथ साथ में आती हैं । जब योगी, पुरुष (आत्मा) और सत्व जिसे महर्षि बुद्धि तत्त्व कह रहे हैं के बीच के भेज या अंतर को स्पष्ट रूप से समझ लेता है या अनुभव कर लेता है तो तब इस पूरी प्रकृति में जितने पदार्थ हैं वे सब योगी के वश में हो जाते हैं। और साथ में उन पदार्थों के विषय में वह सबकुछ जान भी लेता है। सर्व ज्ञातृत्वम का अर्थ यह नहीं है कि फिर योगी सबकुछ जान लेता है बल्कि जिन पदार्थों के विषय में पूर्ण वशता प्राप्त हुई है, उनके विषय में सबकुछ योगी जान लेता है। अब प्रश्न उठता है कि ऐसा कैसे संभव होता है? जब इंद्रियां एवं पंच महाभूत योगी के वश में हो जाते हैं तब रजस और तमस का प्रभाव कम होते हैं और केवल सत्त्व गुण की प्रधानता रहने लग जाती है और सत्व गुण का स्वरूप होता है प्रकाश करने वाला। तब योगी की बुद्धि में सत्त्व गुण के कारण वश में किए गए पदार्थों के विषय में। सब जानकारी उघड़ कर आ जाती है और इसी प्रकाश में योगी बुद्धि को अलग और पुरुष को अलग देख लेता है और मुक्त हो जाता है। क्योंकि पुरुष और बुद्धि का संयोग सबसे बड़े संशय का कारण होती है। यही संशय मनुष्य को सब प्रकार से जन्म मृत्यु के बंधन से बांधती है। प्रारंभ में वह सत्त्व गुण धीरे धीरे प्रकाशित होता है लेकिन जैसे ही पूर्ण प्रकाश से युक्त हो जाती है तो भगवान के अनुग्रह से एवं योगी की साधना पुरुष और बुद्धि का अंतर एकदम स्पष्ट हो जाता है। उसको साफ अंतर दिखाई देने लग जाता है कि बुद्धि अलग है और मैं पुरुष अलग हूं। इस प्रकार का सबसे बड़ा ज्ञान विवेक ज्ञान योगी को हो जाता है।
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