Chapter 3 : Vibhooti Pada
|| 3.5 ||

तज्जयात्प्रज्ञालोकः 


पदच्छेद: ‌तत् ,जयात् , प्रज्ञालोक: ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • तत् -उस संयम पर
  • जयात् -विजय प्राप्त करने से
  • प्रज्ञा -समाधि प्रज्ञा का
  • आलोक: -प्रकाश या उत्कर्ष होता है।

English

  • tad - of that
  • jayat - mastery
  • prajna - knowledge, wisdom
  • lokah - dawns.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: संयम (धारणा-ध्यान-समाधि) पर विजय प्राप्त करने से योगी की बुद्धि समाधि परक प्रकाश से आलोकित हो जाती है।

Sanskrit:

English: By mastering that (samyama), the light of knowledge (prajna) dawns.

French: 

German: Aus der Beherrschung von Samyama ( der Versenkung) entsteht vollkommenes Wissen über alles, was es wahrzunehmen gibt.

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Yog Sutra 3.5

Explanation/Sutr Vyakhya

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  • Yog Kavya

धारणा-ध्यान-समाधि जिसे एक स्वरुप से संयम कहते हैं, का अभ्यास करने से और फिर उसकी सिद्धि होने से साधक को प्रकृष्ट ज्ञान का प्रकाश स्वयं में हो जाता है | इस सूत्र में महर्षि ने संयम करने से सर्वप्रथम क्या फल मिलता है यह बतलाया है | जब तक संयम सिद्ध नही हो जाता है तब तक किसी वस्तु, विषय का सामान्य ज्ञान तो होता रहता है लेकिन संयम के सिद्ध होने पर तद्विषयक सही सही ज्ञान होने लगता है | साधना से यह सिद्धि साधक को मिलने लगती है | इस प्रकार के ज्ञान के प्राप्त होने पर साधक को चाहिए कि भूलवश अहंकार भी भीतर प्रवेश न करें क्योंकि सभी सिद्धियाँ अपने साथ अहंकार को ला सकती हैं यदि साधक चेतन और सावधान नहीं रहा तो इस सिद्धिओं का प्रयोग करता हुआ कुछ ही समय में अपनी स्थिति से नीचे गिर सकता है और उसकी साधना खंडित हो सकती हैं इसलिए सिद्धिओं की प्राप्ति में यह सावधानी विशेष रूप से रखने के लिए महर्षि ने अंत में स्पष्ट निर्देश भी दिया है |

संयम की सिद्धि होने जाने पर साधक के चित्त में तमोगुण और रजोगुण न्यून हो जाते हैं जिससे सत्वगुण अधिक उभर कर आ जाता है और विशेष ज्ञान की अनुभूति होने लग जाती है | चित्त की इस दशा को बनाये रखने के लिए साधक को चाहिए कि वह संयम का निरंतरता के साथ अभ्यास करता रहे |

 

ध्यान रहे यहाँ संयम को एकत्व रूप में धारणा-ध्यान और समाधि को कहा जा रहा है |

coming soon..
coming soon..
coming soon..
coming soon..

सूत्र: तज्जयात्प्रज्ञालोकः

 

जब संयम सिद्धि योगी कर लेता है

रस प्रज्ञा आलोक का भर लेता है

तब समाधि-धार निर्मलता को पाती है

उत्कृष्ट स्थिति में पहुंचाती है

संयम का ऐसा फल तुम जानो

तब योगी की स्थिति “विमल” तुम जानो

One thought on “3.5”

  1. अद्वितीय says:

    गुरुदेव इनको भी व्याख्या कीजिए ना।🙏

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