Chapter 3 : Vibhooti Pada
|| 3.2 ||

तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम् 


पदच्छेद: तत्र, प्रत्यैक-तानता, ध्यानम् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • तत्र- जहाँ पर अर्थात जिस स्थान पर धारणा का अभ्यास किया गया है, उसी स्थान पर
  • प्रत्यय- ज्ञान या चित्त की वृत्ति की
  • एकतानता- एक समान ज्ञान अर्थात एकरूपता बनी रहना ही
  • ध्यानम् - ध्यान है ।

English

  • tatra - in that
  • pratyaya - mental modifications
  • ikatanata - continuous flow of similar
  • dhyanam - meditation.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: जहाँ जिस स्थान पर भी धारणा का अभ्यास किया गया है, वहाँ पर उस ज्ञान या चित्त की वृत्ति की एकरूपता या उसका एक समान बने रहना ही ध्यान कहलाता है ।

Sanskrit: 

English: In that(Dharana) the unbroken flow of similar mental modifications is called Dhyana.

French: 

German: Dann werden alle Eindrücke zielstrebig zum Motiv strömen und Dhyānam, das stille Reflektieren, beginnt.

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Yog Sutra 3.2

Explanation/Sutr Vyakhya

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  • Yog Kavya

धारणा विषयक निर्देश देने के बाद महर्षि योग के तीन अन्तरंग साधनों में से दुसरे अन्तरंग साधन ध्यान की बात कर रहे हैं | महर्षि पतंजलि ने पुरे योग दर्शन में क्रम का विशेष महत्व रखा हुआ है | प्रत्येक विषय को ठीक से परिभाषित करते हुए, उसके साधन की बात बताते हुए फिर वे दुसरे विषय को सूत्र रूप में हमारे सामने लाते हैं | इसी क्रम में ध्यान की परिभाषा करते हुए महर्षि कहते हैं कि- अपने अपने रूचि अनुसार साधक ने जिस स्थान विशेष ( नाभि चक्र, नासिकाग्र, भृकुटी या मूर्धा, ह्रदय प्रदेश अथवा जिह्वा के अग्र भाग ) पर अपनी धारणा को बनाया था उस स्थान में उस विषयक ज्ञान के प्रवाह का एक समान जितनी देर तक बना रहता है, उतनी देर के लिए उसे ध्यान कहा जाता है |

यदि कोई योग साधक अपने मूर्धा में भगवान् के किसी साकार रूप के ऊपर धारणा करता है और उस मूर्धा स्थान पर भगवान् के रूप का ज्ञान जितनी देर तक अबाधित रूप से बना रहता है, उतनी देर के लिए समझें कि साधक का ध्यान हुआ | प्रारंभ में साधक का ध्यान हो सकता है कुछ समय के लिए ही लगे लेकिन इसी ध्यान के अभ्यास को और गहराई से करते रहने से ध्यान का अभ्यास भी अच्छे से होने लग जाता है और जितनी देर तक ध्यान लगा रहता है उतनी देर के लिए चित्त एक ही विषय में एकाग्र होने लग जाता है, जिसका परिणाम होता है कि साधक चाहे तो कभी भी, किसी भी विषय में स्वेच्छा से अपनी इन्द्रियों को अंतर्मुखी कर सकता है | जब ऐसा नियंत्रण साधक में आने लग जाए तो फिर भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों क्षेत्र में प्रगति कर सकता है |

इसीलिए पुरे भारत वर्ष में यदि सबसे अधिक प्रचलित कोई शब्द है तो वह है “ध्यान” | सभी बड़े बुजुर्ग, घर परिवार में सभी को यह बोलते हैं कि- बेटा ध्यान से जाना, ध्यान से खाना, ध्यान से रहना, ध्यान से बोलना आदि आदि | ध्यान शब्द पुरे भारत वर्ष में बोले जाने वाला सर्वाधिक प्रचलित शब्द है | लेकिन आज वैदिक शिक्षा के अभाव में इस शब्द की महत्ता केवल एक सम्भावना के रूप में ही रह गई है | जैसे जैसे वैश्विक रूप से योग को पहचान मिली है तो पुनः योग के सभी आठों अंगों के ऊपर चर्चा शुरू हुई है सबसे अधिक उसमें ध्यान के ऊपर चर्चा प्रारंभ हुई है |

जो कुछ शुभ है, उसकी धारणा करते हुए हम अपने ध्यान को बढ़ाएं तो फिर सब प्रकार से जीवन में समाधान ही समाधान होगा |

coming soon..
coming soon..
coming soon..
coming soon..

सूत्र: तत्र प्रत्ययैकतानता ध्यानम्

 

जिस स्थान पर धारणा बनी हो

ज्ञान की डोर एक तान तनी हो

स्थिति विशेष यह ध्यान कहाती

योगी को अत्यंत सुख पहुंचाती

14 thoughts on “3.2”

  1. Dr Anagha Athavale says:

    I am highly impressed to go through the articles you have posted here. Would like to be connected with you forever

    1. admin says:

      Thank you dr Anagha ji for your kind words. It would be our honor to be connected with you. Please share this peice of knowledge with your loved ones.

    2. admin says:

      thanks Dr Anagha Athavale ji, sure, Please share this peice of knowledge with your loved ones.

  2. Neeraj says:

    All the sutra are very nice and clearly defined.

    1. admin says:

      Thank you neeraj ji.. please continue to support our initiative.

  3. Saurav Kumar says:

    Awesome

    1. admin says:

      Thanks. Please share with others too.

  4. Gaurang says:

    adbhut prayatna awsome

    1. admin says:

      Thanks for your kind words and motivation.

  5. Mahimansinh Gohil says:

    It’s my fortune to read your commentary on Patanjali Yoga Sutras. Excellent work, Sir.
    Regards,
    Dr. Mahimansinh Gohil
    USA

  6. अंतिम आर्य says:

    विभूतिपाद के सूत्रों की भी हिंदी में विस्तृत व्याख्या उपलब्ध करवाने की कृपा करें। जैसे आपने पहले के दूसरे पाद [ समाधिपाद व साधनपाद ] में उपलब्ध करवायी हैं।

  7. Anil says:

    Your articles and informations are nice.
    But please also provide explanation audio.

  8. पुरुषोत्तम सावंत says:

    इस लिंक द्वारा जो भी सूत्रपात प्राप्त हो रहा हैं, उससे इस मनोशरीर यंत्र को, मराठी से हिंदी में अनुवाद करनेमे काफ़ी सुविधा उपलब्ध हो रही हैं ! धन्यवाद

    1. admin says:

      धन्यवाद पुरुषोत्तम जी

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