Chapter 3 : Vibhooti Pada
|| 3.42 ||

कायाकाशयोः सम्बन्धसंयमाल्लघुतूलसमापत्तेश्चाकाशगमनम् 


पदच्छेद: काय-आकाशयो:, सम्बन्ध-‌संयमात् -लघु-तूल-समापत्ते:, च, आकाश-गमनम् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • काय-शरीर व
  • आकाशयो:-आकाश के
  • सम्बन्ध-परस्पर सम्बन्ध में
  • संयमात् -संयम (धारणा-ध्यान-समाधि) करने से
  • च-और
  • लघु-छोटे अथवा हल्के
  • तूल -रुई आदि पदार्थों या वस्तुओं में संयम करने से
  • समापत्ते: -उन्ही पदार्थों की भाँति जाना या चित्त का भी उसी के अनुसार हल्के होंने से
  • आकाश-आकाश में
  • गमनम् - उड़ने की शक्ति प्राप्त होती है

English

  • kaya - body
  • akashayoh - akasa
  • sambandha - relationship
  • samyamat - samyama
  • laghu - light
  • toola - cotton
  • samapatte - become one with
  • cha - and
  • akasha - space
  • gamanam - travel.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: शरीर एवं आकाश तत्त्व के आपसी सम्बन्ध में संयम करने और रुई जैसे बहुत ही हल्के पदार्थों में संयम करने से योगी का शरीर और चित्त उन्हीं पदार्थों की तरह हलके और सूक्ष्म हो जाते हैं , जिससे उसे आकाश में गमन करने  रूप शक्ति की प्राप्त हो जाती है ।

Sanskrit:

English: By making samyama on the relation between the akasa and the body the yogi becoming light as cotton wool, and thus traveling through the space is possible.

French: 

German: Samyama ( Versenkung) in die Verbindung zwischen Körper und Raum und tiefes Verständnis für die Leichtigkeit von Baumwollflocken befähigen den Übenden, sich im Raum zu bewegen.

Audio

Yog Sutra 3.42

Explanation/Sutr Vyakhya

  • Hindi
  • English
  • Sanskrit
  • French
  • German
  • Yog Kavya

कायाकाशयोः सम्बन्धसंयमाल्लघुतूलसमापत्तेश्चाकाशगमनम् ॥ ३.४२॥

प्रस्तुत सूत्र में महर्षि आकाश गमन रूप सिद्धि की बात कर रहे हैं | जब योगी अपने शरीर और आकाश के बीच के सम्बन्ध  एवं हल्केपदार्थों जैसे रुई आदि में संयम करता है तो एक निश्चित प्रकिया से उसका शरीर और मन या चित्त भी हल्का हो जाता है जिससे वह आकाश में ऊपर उठने लग जाता है |

आकाश गमन के दो अर्थ निकाले जा सकते हैं- ऊपर दूर आकाश में गति करना और एक है पृथ्वी से ठीक ऊपर जो खाली स्थान है उसमें गति करना | क्योंकि जब महर्षि पतंजलि आकाश शब्द का प्रयोग करते हैं तो उसका अर्थ केवल खाली स्थान से है | अंग्रेजी में भी आकाश का अनुवाद करें तो स्पेस शब्द है उसके लिए और स्पेस का अर्थ भी खाली स्थान ही होता है |

योगी अपनी साधना से जब शरीर और आकाश के बीच के परस्पर सम्बन्ध में और हल्के पदाथों के ऊपर अपनी धारणा-ध्यान और समाधि को एक साथ लगाता है तो उसमें हल्कापन आने से वह जमीन से थोडा ऊपर उठना शुरू कर देता है | गुरुत्वाकर्षण के विपरीत जाकर वह ऐसा नहीं करता अपितु योगी स्वयं के भार को हल्का कर देता है |

इस बात को थोडा अलग तरीके से समझते हैं- कई बार आपने महसूस किया होगा कि आपका शरीर आपको भारी लगता है जबकि कोई अतिरिक्त वजन आपका बढ़ा नहीं है लेकिन आपके अनुभव में आता है जैसे शरीर में खूब भारीपन है | जबकि वस्तुतः ऐसा कुछ होता नहीं है, उसी प्रकार कभी कभी आपको  सबकुछ हल्का हल्का लगता है, ऐसा लगता है जैसे आप बहुत सहजता से तीव्र गति से चल रहें हैं | क्योंकि आपको मानसिक और शारीरिक रूप से अपने भीतर एक हल्कापन महसूस होता है |

यह बात तो मैंने सामान्य लोगों के विषय में कही है लेकिन जब  योगी अपनी साधना से एक प्रक्रिया के अनुसार आगे बढ़ता है तो उसके शरीर में जो हल्कापन आता है वह उसे पृथ्वी से ऊपर उठा देता है और जब वह चलता है तो ऐसा लगता है जैसे पृथ्वी से ऊपर ऊपर चल रहा हो, इसी को महर्षि पतंजलि आकाश गमन की सिद्धि कह रहे हैं |

वर्तमान में योग ऋषि रूप  परम पूज्य गुरुदेव पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज जी जब चलते हैं तो अनेकों बार ऐसा एहसास होता है जैसे वे पाँव धरती पर रखते ही न हों क्योंकि उनकी चाल में एक अभूतपूर्व गति होती है | जब वे एकांत में चलते हैं तो उनके इस प्रकार चलने की रीति से लगता है जैसे वे अत्यंत हल्के होकर विचरण कर रहे हों |

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