Chapter 3 : Vibhooti Pada
|| 3.21 ||

कायरूपसंयमात्तद्ग्राह्यशक्तिस्तम्भे चक्षुःप्रकाशासंप्रयोगेऽन्तर्धानम् 


पदच्छेद: काय-रूप-संयमात्, तत्-ग्राह्य-शक्ति-स्तम्भे, चक्षु:, प्रकाश-असम्प्रयोगे ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • काय-काया अर्थात शरीर
  • रूप –शरीर के रूप
  • संयमात्-में संयम करने से
  • तद्-जब
  • ग्राह्यशक्ति -जिस प्रकाश रूपी ग्राह्यशक्ति से देखा जा रहा है
  • स्तम्भे-उसके रुक जाने पर
  • चक्षु: -तब आँखों का
  • प्रकाश-रोशनी से
  • असम्प्रयोगे-सम्बन्ध न होने के कारण
  • अन्तर्धान-योगी अन्तर्धान हो जाता है, अर्थात योगी दिखाई देना बंद हो जाता है

English

  • kaya- body
  • roopa - form
  • sanyamat - samyama
  • tat - that
  • grahya - can be perceived
  • shakti - power
  • stambhe - obstructed
  • chakshuh - eye
  • prakasha - light
  • sanprayoga - separated
  • antardhanam - invisible.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: जब योगी अपने शरीर के रूप में संयम (धारणा-ध्यान एवं समाधि ) का दृढ एवं सतत अभ्यास  कर लेता है तो उससे दूसरे व्यक्तियों की आँखों का रोशनी के साथ उसके शरीर का सम्बन्ध टूट जाता है, जिससे उनकी योगी के शरीर को देखने की शक्ति रुक जाती है । इस कारण योगी का शरीर दूसरों को दिखाई देना बंद हो जाता है या अदृश्य हो जाता है ।

Sanskrit: 

English: By making samayama on the form of the body the power of perceiving forms being obstructed, the power of manifestation in the eye being separated, the Yogi's body becomes invisible.

French: 

German: Samyama ( Versenkung) in die Körperform macht den Übenden unsichtbar: Die Eigenschaft, die ein Objekt sichtbar macht, erstarrt bei ihm, so dass das Licht der Augen eines Schauenden ihn nicht trifft.

Audio

Yog Sutra 3.21

Explanation/Sutr Vyakhya

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  • Yog Kavya

कायरूपसंयमात्तद्ग्राह्यशक्तिस्तम्भे चक्षुःप्रकाशासंप्रयोगेऽन्तर्धानम् ॥ ३.२१॥

विभूति पाद में विभिन्न विभूतिओं के क्रम में अब अंतर्धान या अदृश्य होने की विभूति  के बारे में महर्षि बता रहे हैं | कैसे एक योगी अपने शरीर के आकार या रूप में  धारणा-ध्यान और समाधि रूप एकत्रित प्रयास संयम को लगाकर स्वयं को अंतर्धान कर लेता है, इस विषय में समझते हैं |

हमें कोई भी वस्तु,व्यक्ति कब और कैसे दिखाई देता है इसको पहले विज्ञान की भाषा में  समझने का प्रयत्न करते हैं |

१. या तो वस्तु  व्यक्ति अँधेरे में हो तो नहीं दिखाई देती

२. या तो वस्तु  व्यक्ति, अत्यंत सूक्ष्म हो तो नहीं दिखाई देती

३. या तो वस्तु  व्यक्ति, बहुत दूर  नहीं दिखाई देती

तो इन कारणों में से अंतर्धान होने के लिए या तो योगी अत्यंत सूक्ष्म कण हो जाए तो नहीं दिखाई देगा अर्थात अदृश्य हो जायेगा या फिर अँधेरा हो जाये तो नहीं दिखाई देगा दूसरो को |

लेकिन यहाँ महर्षि अँधेरे में अंतर्धान होने की बात नहीं कर रहे हैं, वे कह रहे हैं की दूसरे व्यक्ति की आँखों का प्रकाश के साथ के साथ  असंयोग होने से और योगी का अपने शरीर के आकार में संयम करने से योगी दूसरे व्यक्ति के लिए अदृश्य हो जाता  है, अर्थात  व्यक्ति है वह जब योगी को देखने के लिए आँखें खोलेगा तो उसकी आँखों से निकल कर जो प्रकाश योगी के शरीर से टकराकर वापस आँखों में चित्र बनाता वो उस प्रकाश का योगी के शरीर के साथ संयोग ही नहीं होता है जिसके कारण वह व्यक्ति योगी का शरीर आँखों से नहीं देख पाता है |

यहाँ संयम का विषय जो है वो योगी का शरीर और उसका रूप, रंग, आकार है, उस पर दृढ़ता से, सतत प्रयास से, श्रद्धा से, उत्साह से धारणा-ध्यान और समाधि का इकठ्ठा प्रयोग करता है तो अंतर्धान अर्थात अदृश्य हो जाने की शक्ति प्राप्त कर लेता है

इसी बात को भगवान श्री कृष्ण गीता में अर्जुन से कहते हैं-

न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा। दिव्यं ददामि ते चक्षुः पश्य मे योगमैश्वरम्।।11.8।। अर्थात परन्तु तू अपनी इस आँख से मेरे स्वरुप को नहीं देख सकता है इसलिये मैं तुझे दिव्य चक्षु (दृष्टि) देता हूँ, जिससे तू मुझे और मेरे अनंत शक्ति, सामर्थ्य को देख सकेगा

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