Chapter 3 : Vibhooti Pada
|| 3.50 ||

तद्वैराग्यादपि दोषबीजक्षये कैवल्यम् 


पदच्छेद: तद् , अपि-वैराग्यात्-अपि , दोष-बीजक्षये,कैवल्यम् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • तद् –तब विशोका नामक सिद्धि से
  • अपि-भी
  • वैराग्यात्-वैराग्य (आसक्ति छूट जाने पर) हो जाने पर
  • दोष बीज-अविद्या आदि क्लेशों के दोष बीज
  • क्षये-नष्ट होने से
  • कैवल्य-मुक्ति की प्राप्ति होती है

English

  • tad - that
  • vairagya - by renunciation
  • api - also
  • dosha - of evil
  • bija - seed
  • kshaye - destroyed
  • kaivalyam - absolute liberation.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: योगी को विशोका नामक सिद्धि से भी वैराग्य हो जाने पर अविद्या आदि पञ्च क्लेशों का नाश हो जाता है । जिससे योगी जीवन मुक्ति हो जाती है ।

Sanskrit: 

English: By giving up even these(all siddhis), the seed of evil is destroyed; he attains kaivalya.

French: 

German: Auch gegenüber diesen Fähigkeiten ist Vairāgya ( Gleichmut) nötig; allein dann gehen die Kleśas ( die störenden Kräfte) so weit zurück, dass die Freiheit entstehen kann.

Audio

Yog Sutra 3.50

Explanation/Sutr Vyakhya

  • Hindi
  • English
  • Sanskrit
  • French
  • German
  • Yog Kavya

प्रस्तुत सूत्र में महर्षि पतंजलि का रहे हैं कि जब योगी उसके इंद्रियों एवं महाभूतों पर वशता प्राप्त हो जाती है और साथ साथ में जब योगी को पुरुष (स्वयं) और बुद्धि के बीच में स्पष्ट अंतर समझ में आ जाता है तब योगी के जीवन में एक और घटना घटती है। 

 

क्योंकि यह समझना कि मैं पुरुष अलग हूं और प्रकृति स्वरूपा बुद्धि अलग है, इस प्रकार के जो निरोध के संस्कार हैं या समझ के संस्कार हैं, क्लेशों को तनु करने के केवल निरोध के संस्कार ही शेष रह जाते हैं। जिसके माध्यम से योगी ने सभी अवांछित संस्कारों को हटाते चले जाते हैं और एक स्थिति ऐसी आती है जब रजस और तमस गुण पूरी तरह समाप्त हो जाते हैं और केवल सत्व गुण की ही शेष रह जाता है जो फिर बुद्धि और पुरुष के बीच के स्पष्ट अंतर स्वरूप ज्ञान का कारण बनता है। और जब क्लेशों को तनु अर्थात हटाते हटाते निरोध संस्कार शेष रहता है और योगी उन निरोध संस्कार को भी हटा देता है तब योगी को कैवल्य अर्थात मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। जैसे उदाहरण के लिए आपके पांव में कोई कांटा चुभ जाता है तो उस कांटे को निकालने के लिए हम किसी दूसरे कांटे का प्रयोग करते हैं। जब उस कांटे को हम निकाल देते हैं तो जिस कांटे से कांटा निकाला था, जिसे साधन या उपकरण बनाया था उसे हम संभाल कर अपने पास नहीं रखते अपितु उस कांटे को भी फेंक देते हैं। क्योंकि उस कांटे का कार्य अब समाप्त हो गया है, यदि उस कांटे को संभाल कर अपनी जेब में रख लेंगे तो अधिक संभावनाएं है कि वही कांटा आपको फिर से चुभ कर कष्ट का कारण न बन जाएं।

coming soon..
coming soon..
coming soon..
coming soon..
coming soon..

One thought on “3.50”

  1. Nabin Khadka says:

    Hindi Explanation is missing from this verse. Please update.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *