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प्रस्तुत सूत्र में महर्षि पतंजलि का रहे हैं कि जब योगी उसके इंद्रियों एवं महाभूतों पर वशता प्राप्त हो जाती है और साथ साथ में जब योगी को पुरुष (स्वयं) और बुद्धि के बीच में स्पष्ट अंतर समझ में आ जाता है तब योगी के जीवन में एक और घटना घटती है।
क्योंकि यह समझना कि मैं पुरुष अलग हूं और प्रकृति स्वरूपा बुद्धि अलग है, इस प्रकार के जो निरोध के संस्कार हैं या समझ के संस्कार हैं, क्लेशों को तनु करने के केवल निरोध के संस्कार ही शेष रह जाते हैं। जिसके माध्यम से योगी ने सभी अवांछित संस्कारों को हटाते चले जाते हैं और एक स्थिति ऐसी आती है जब रजस और तमस गुण पूरी तरह समाप्त हो जाते हैं और केवल सत्व गुण की ही शेष रह जाता है जो फिर बुद्धि और पुरुष के बीच के स्पष्ट अंतर स्वरूप ज्ञान का कारण बनता है। और जब क्लेशों को तनु अर्थात हटाते हटाते निरोध संस्कार शेष रहता है और योगी उन निरोध संस्कार को भी हटा देता है तब योगी को कैवल्य अर्थात मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। जैसे उदाहरण के लिए आपके पांव में कोई कांटा चुभ जाता है तो उस कांटे को निकालने के लिए हम किसी दूसरे कांटे का प्रयोग करते हैं। जब उस कांटे को हम निकाल देते हैं तो जिस कांटे से कांटा निकाला था, जिसे साधन या उपकरण बनाया था उसे हम संभाल कर अपने पास नहीं रखते अपितु उस कांटे को भी फेंक देते हैं। क्योंकि उस कांटे का कार्य अब समाप्त हो गया है, यदि उस कांटे को संभाल कर अपनी जेब में रख लेंगे तो अधिक संभावनाएं है कि वही कांटा आपको फिर से चुभ कर कष्ट का कारण न बन जाएं।
Hindi Explanation is missing from this verse. Please update.