शब्दार्थप्रत्ययानामितरेतरा ध्यासात्संकरस्तत्प्रविभागसंयमात्सर्वभूतरुतज्ञानम् ।।
पदच्छेद में सूत्र में प्रयुक्त सभी पदों का पृथक पृथक अर्थ दिया गया है | इस पुरे सूत्र में जो नए पद आये हैं वे हैं-
शब्द-अर्थ-प्रत्यय (अर्थात ज्ञान या जानकारी), अध्यासात्-प्रविभाग एवं रूतज्ञानं | विभूति पाद में जैसा बताया था कि यहाँ महर्षि अब धारणा-ध्यान और समाधि के सम्मिलित रूप संयम का शरीस्थ अथवा शरीर से बाहर सृष्टि के पदार्थों पर प्रयोग करने से विभिन्न प्रकार की शक्तियां योगी को मिलने लग जाती हैं, अब उसी क्रम में महर्षि “सर्वभूतरूतज्ञानं” नामक विभूति का वर्णन हम सब साधकों के लिए कर रहे हैं |
महर्षि कहते हैं कि, प्रत्येक जानने योग्य वस्तु, पदार्थ या कहे जाने योग्य का का ज्ञान तीन प्रकार की प्रक्रिया से होकर गुजरता है | एक तो उसका नाम होता है, जिसे शब्द के माध्यम से व्यक्त किया जाता है और फिर उसका एक अर्थ होता है जो नाम लेते ही उसके साथ जुड़ जाता है फिर जब शब्द और अर्थ जुड़कर उसके विषय में ज्ञान को उत्पन्न कर देते हैं | ये तीनों एक दूसरे के साथ अत्यंत गहनता के साथ जुड़े हुए होते हैं |
सामान्य रूप से ऐसा क्रम समझ में नहीं आता है क्योंकि दैनिक जीवन में इस प्रकार का चिंतन व्यक्ति नहीं करता है लेकिन सूक्ष्मता से देखने पर हमें सृष्टि की व्यवस्था एवं काम करने की प्रक्रिया का भान होता है | महर्षि पतंजलि हमें उस सूक्ष्मता की यात्रा पर ले जाना चाहते हैं जहाँ से सृष्टि नियम की समझ हम में उभरे और हम अपने जीवन को सूक्ष्मता सामर्थ्य अर्जित कर सकें | जब योगी शब्द-अर्थ और उसके ज्ञान पर अलग अलग रूप से धारणा-ध्यान समाधि (संयम) का प्रयोग करते हैं और धीरे धीरे जब इसमें सिद्धहस्त हो जाते हैं अर्थात हमारा अभ्यास दृढ़ हो जाता है तब योगी को सब प्राणियों के द्वारा उच्चारित सब शब्दों का ज्ञान होने लग जाता है अर्थात योगी को ऐसी विभूति या शक्ति मिल जाती है जिसके बाद इस संसार में मनुष्य हो या कोई भी जीव जंतु हो वो क्या बोल रहे हैं, इसका पता योगी को चल जाता है |
अभ्यास के लिए: परमात्मा शब्द को ले लेते हैं | अब परमात्मा एक शब्द है, इसका एक अर्थ है और शब्द अर्थ के साथ उसका ज्ञान भी जुड़ा हुआ है | अब प्रतिदिन हम शब्द के ऊपर धारणा-ध्यान और समाधि को एक साथ लगाएंगे | ध्यान रखें कि केवल शब्द के ऊपर ही हमें संयम करना है उसके बाद परमात्मा शब्द के अर्थ के ऊपर संयम करेंगे और फिर अलग से परमात्मा शब्द का जो ज्ञान है उसपर अलग से संयम का अभ्यास करेंगे|
परमात्मा- शब्द पर अपनी धारणा-ध्यान और समाधि रूप संयम को निरंतर लगाए रखें | इस स्थिति में केवल शब्द के ऊपर ही सारी संयम की एकाग्रता रहेगी इसके अतिरक्त इसके अतिरिक्त कुछ अन्य अनुभव में न आये |
अर्थ- परमात्मा शब्द के अर्थ में संयम करने का अर्थ है, परमात्मा शब्द के बाद जो उसकी आकृति मन में आती है उसपर संयम स्थापित किया जाये | अब यहां परमात्मा शब्द के अर्थ में हम प्रकाश को ले लेंगे, जैसे हज़ारों सूर्य का प्रकाश एक साथ उदित हो गया हो, क्योंकि परमात्मा प्रकाश स्वरुप है |
ज्ञान-जब परमात्मा शब्द के ज्ञान पर संयम करना हो तो परमात्मा सर्व व्यापक है, सबकुछ यह दृश्य और अदृश्य उसी में समाया हुआ है, सब प्राणियों बाहर वही एक समाया हुआ है | सब सद्गुणों, आनंद, उत्साह, प्रेम,भक्ति, श्रद्धा, विश्वास, सहजता और सरलता का स्त्रोत वही है यह जो अनंत ज्ञान राशि है, इसके ऊपर धारणा-ध्यान और समाधि का प्रयोग करना है |
इस प्रकार से और इस प्रक्रिया से जब यह संयम सिद्ध हो जाता है तब सभी शब्दों-उसके अर्थ एवं उसका ज्ञान योगी को हो जाता है |
सूत्र: शब्दार्थप्रत्ययानामितरेतराध्यासात् सङ्करस्तत्प्रविभागसंयमात्सर्वभूतरुतज्ञानम्
शब्द का भला स्वरूप क्या होता?
अर्थ और ज्ञान के अनुरूप जो होता
जब ध्वनि के पीछे अर्थ है भासता
तभी ज्ञान भी पीछे पीछे है आता
सब प्राणियों का हो जाता शब्द बोध
पृथक पृथक जब होता संयम का शोध
very interesting
Thank you dolly ji. Please continue your support