उदान प्राण पर विजय के बाद महर्षि बता रहे हैं कि यदि योगी समान नमक प्राण पर वशता कर ले तो फिर एक पुरे शरीर में एक विशेष प्रकार की तेजस्विता आने लग जाती है |
समान नामक प्राण की स्थिति शरीर में नाभि प्रदेश से लेकर ह्रदय प्रदेश तक होती है जिसका मुख्य कार्य पाचन तंत्र को ठीक रखना होता है और साथ ही पचे हुए भोजन को समान रूप से सारे शरीर में वितरित करता करना है |
शरीर की तेजस्विता हमारे अच्छे सात्विक भोजनएवं उसके ठीक प्रकार से पाचन पर निर्भर है | ठीक प्रकार के पाचन के बाद से जब वह भोजन उर्जा में बदलकर पुरे शरीर में समान रूप से वितरित होता है तो शरीर की कांति बढ़ने लग जाती है |
इस प्रकार समान नामक प्राण से तेजस्विता का सीधा अर्थ है |