Chapter 3 : Vibhooti Pada
|| 3.41 ||

श्रोत्राकाशयोः सम्बन्धसंयमाद्दिव्यं श्रोत्रम् 


पदच्छेद: श्रोत-आकाशयो:, सम्बन्ध-संयमात् -दिव्यं, श्रोतम् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • श्रोत्र-कान और
  • आकाशयो:-आकाश
  • सम्बन्ध-दोनों के परस्पर सम्बन्ध में
  • संयमात् –संयम (धारणा-ध्यान-समाधि) करने से
  • श्रोत्रम् -कानों में
  • दिव्यं -दिव्यता अर्थात सूक्ष्म शब्दों को सुनने की शक्ति आ जाती है

English

  • shrotra - ear, power of hearing
  • akashayoh - akasa
  • sanbandha - relationship
  • sanyamad - samyama
  • divyam - divine
  • shrotram - ear.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: कानों एवं आकाश के आपसी सम्बन्ध में संयम करने से योगी के दिव्य श्रोत अथवा सुनने की दिव्य क्षमता की प्राप्ति होती है । जिस शक्ति के द्वारा वह सूक्ष्म से सूक्ष्म शब्दों को भी सहजता से सुनने में सक्षम हो जाता है ।

Sanskrit:

English: By making samyama on the relation between the ear and the akasa, one obtains divine sense of hearing.

French: 

German: Aus Samyama ( Versenkung) in die Beziehung zwischen Klang und Raum entsteht göttliches Hörvermögen.


Audio

Yog Sutra 3.41

Explanation/Sutr Vyakhya

  • Hindi
  • English
  • Sanskrit
  • French
  • German
  • Yog Kavya

श्रोत्राकाशयोः सम्बन्धसंयमाद्दिव्यं श्रोत्रम् ॥ ३.४१॥

महर्षि पतंजलि कह रहे हैं कि जब योगी अपने कानों और आकाश के बीच के सम्बन्ध के ऊपर धारणा-ध्यान और समाधि रूप संयम को साध लेता है तो योगी का श्रवण दिव्य हो जाता है | वह सूक्ष्म से भी सूक्ष्म आवाजों को सुनने में सक्षम हो जाता है |

शब्द और आकाश का जो सम्बन्ध है वह बहुत गहरा सम्बन्ध है | आकाश पञ्च महाभूत में से एक महाभूत तत्त्व है जिसकी तन्मात्रा शब्द अर्थात ध्वनि है | और शब्द का आधार आकाश होता है अर्थात खाली स्थान | शब्द या ध्वनि केवल खाली स्थान में ही गति कर सकती है तो जितना खाली स्थान होगा उतना शब्द आसानी से गति करेगा | यदि बीच में किसी भी प्रकार की बाधा आती है तो शब्द की गति अवरुद्ध हो जाती है |

इसलिए आपने देखा है कि बंद कमरे से आवाज बाहर नहीं जाती है क्योंकि उसमें दीवार रूपी बाधा आ जाती है | अतः महर्षि कह रहे हैं कि शब्द और आकाश का जो अबाधित सम्बन्ध है, उस पर जब योगी संयम करता है तो इस प्रक्रिया में ही पहले से बेहतर श्रवण शक्ति होने लग जाती है और धीरे धीरे इस प्रकार के संयम से दिव्य श्रवण शक्ति योगी को प्राप्त हो जाती है |

 

आप स्वयं इस प्रक्रिया को अनुभव करने का प्रयास करेंगे तो आपको महसूस होगा कैसे आप अपने आस पास आ रही सूक्ष्म आवाजों को सुनने में सक्षम हो पा रहे हैं |

 

विशेष:

पञ्च महाभूत- पृथ्वी-जल-अग्नि-वायु-आकश

पञ्च ज्ञानेन्द्रिय- आँख-कान-नासिका-जिह्वा-त्वचा

coming soon..
coming soon..
coming soon..
coming soon..
coming soon..

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *