Chapter 2 : Sadhana Pada
|| 2.55 ||

ततः परमा वश्यतेन्द्रियाणाम् 


पदच्छेद: ततः, परमा, वश्यता-इन्द्रियाणाम् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • तत-उसके बाद अर्थात प्रत्याहार की सिद्धि होने पर
  • परमा -परम अर्थात सबसे ऊँचा
  • वश्यता-वशीकरण अर्थात नियंत्रण
  • इन्द्रियाणाम्-इन्द्रियों पर आता है ।

English

  • tatah- thence
  • parama - supreme
  • vashyata - mastery, control
  • indriyanam - of the sense.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: उस प्रत्याहार के सिद्ध होने से योगी साधक का इन्द्रियों पर पूरी तरह से नियंत्रण हो जाता है ।

Sanskrit: 

English: Thence arises supreme mastery over the organs.

French: 

German: So kommen die Sinne unter den größten Bann.

Audio

Yog Sutra 2.55
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Explanation/Sutr Vyakhya

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  • Yog Kavya

जब प्रत्याहार की भी सिद्धि हो जाती है अर्थात योगी जब प्रत्याहार करने में सक्षम हो जाता है तब इन्द्रियों पर उसका एक विशेष नियंत्रण या वशता आ जाती है । वास्तविक रूप से वह इन्द्रियजय के अत्यंत करीब आ जाता है । इन्द्रियजय का अर्थ है अपनी इच्छानुसार अपनी इन्द्रियों को को उनके उनके विषय में लगाना ।

अष्टांग योग के आठों ही अंग अपना अपना विशेष महत्त्व रखते हैं और प्रत्येक के ऊपर योगी को कार्य करना होता है । ये सभी आठ अंग जब योगी के द्वारा ठीक प्रकार से पालित होते हैं तब एक दुसरे की सिद्धि के लिए सहायक होते हैं । इस प्रकार प्रत्याहार की भी अपनी महत्ता है और बहुत बड़ी महत्ता है । यदि प्रत्याहार सिद्ध न हो योगी का तो वह अधिक देर तक चित्त को किसी एक स्थान पर अधिक समय के लिए लगाकर नहीं रख सकता है । उसकी इन्द्रियों पर वश न होने से चित्त बार बार इन्द्रियों के विषयों की ओर गति करता रहेगा । लेकिन प्रत्याहार की सिद्धि के लिए प्राणायाम सिद्ध होना आवश्यक है, बिना प्राणायाम के ठीक प्रकार से अभ्यास किये बिना इन्द्रियों के ऊपर नियंत्रण नहीं आयेगा और प्राणायाम की सिद्धि आसन की सिद्धि पर निर्भर है । योग में सबकुछ एक दुसरे पर निर्भर है अतः समग्रता के सिद्धांत का पालन आवश्यक है ।

 

जब तक योग में समग्र दृष्टि का समावेश नहीं होगा तब तक वास्तविक प्रगति संभव नहीं है । जब योगी के भीतर आसन एवं प्राणायाम पूर्वक प्रत्याहार सिद्ध हो जाता है तब उसकी इन्द्रियां योगी के अनुसार ही अपने अपने विषयों की ओर प्रवृत्त होती हैं न कि वे योगी को अपने विषयों की ओर लेकर जाती हैं, इस प्रकार योगी के जीवन में एक ठहराव आ जाता है और वह धारणा और ध्यान के लिए तैयार होने लग जाता है ।

इन्द्रियों की यह परम वशता क्या है ?- जब तक प्रत्याहार सिद्ध नहीं हुआ था इन्दिर्याँ  व्यक्ति को जब चाहे तब अपने अपने विषय में लेकर चली जाती थी और न चाहते हुए भी व्यक्ति भोगों की ओर चला जाता था और होश आने पर पछताता था । योग मार्ग पर चलते चलते बहुत बार भटकता भी रहता था और फिर प्रायश्चित करते करते ग्लानि भाव में भी चले जाता था लेकिन जब प्रत्याहार सिद्ध हो जाता है तब फिर न तो भोगों की ओर ही उसकी गति होती है और न ही फिर कोई ग्लानि या भटकन ही होती है वह एकाग्र हो जाता है और फिर योग मार्ग पर वह निर्बाध रूप से आगे बढ़ने लग जाता है ।

coming soon..
coming soon..
coming soon..
coming soon..

सूत्र: ततः परमा वश्यतेन्द्रियाणाम्

 

प्रत्याहार से क्या फल है मिलता?

योगी को कैसा संबल है मिलता?

पूर्ण वशता इंद्रियों के ऊपर

परम दिव्यता प्रत्याहार के बल पर

योगी स्वयं में पाता है

स्वयं को आश्वस्त पाता है

ध्यान, धारणा सब सहज हो जाती

बुद्धि भी शुद्ध सात्विक समझ को पाती

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