जब प्रत्याहार की भी सिद्धि हो जाती है अर्थात योगी जब प्रत्याहार करने में सक्षम हो जाता है तब इन्द्रियों पर उसका एक विशेष नियंत्रण या वशता आ जाती है । वास्तविक रूप से वह इन्द्रियजय के अत्यंत करीब आ जाता है । इन्द्रियजय का अर्थ है अपनी इच्छानुसार अपनी इन्द्रियों को को उनके उनके विषय में लगाना ।
अष्टांग योग के आठों ही अंग अपना अपना विशेष महत्त्व रखते हैं और प्रत्येक के ऊपर योगी को कार्य करना होता है । ये सभी आठ अंग जब योगी के द्वारा ठीक प्रकार से पालित होते हैं तब एक दुसरे की सिद्धि के लिए सहायक होते हैं । इस प्रकार प्रत्याहार की भी अपनी महत्ता है और बहुत बड़ी महत्ता है । यदि प्रत्याहार सिद्ध न हो योगी का तो वह अधिक देर तक चित्त को किसी एक स्थान पर अधिक समय के लिए लगाकर नहीं रख सकता है । उसकी इन्द्रियों पर वश न होने से चित्त बार बार इन्द्रियों के विषयों की ओर गति करता रहेगा । लेकिन प्रत्याहार की सिद्धि के लिए प्राणायाम सिद्ध होना आवश्यक है, बिना प्राणायाम के ठीक प्रकार से अभ्यास किये बिना इन्द्रियों के ऊपर नियंत्रण नहीं आयेगा और प्राणायाम की सिद्धि आसन की सिद्धि पर निर्भर है । योग में सबकुछ एक दुसरे पर निर्भर है अतः समग्रता के सिद्धांत का पालन आवश्यक है ।
जब तक योग में समग्र दृष्टि का समावेश नहीं होगा तब तक वास्तविक प्रगति संभव नहीं है । जब योगी के भीतर आसन एवं प्राणायाम पूर्वक प्रत्याहार सिद्ध हो जाता है तब उसकी इन्द्रियां योगी के अनुसार ही अपने अपने विषयों की ओर प्रवृत्त होती हैं न कि वे योगी को अपने विषयों की ओर लेकर जाती हैं, इस प्रकार योगी के जीवन में एक ठहराव आ जाता है और वह धारणा और ध्यान के लिए तैयार होने लग जाता है ।
इन्द्रियों की यह परम वशता क्या है ?- जब तक प्रत्याहार सिद्ध नहीं हुआ था इन्दिर्याँ व्यक्ति को जब चाहे तब अपने अपने विषय में लेकर चली जाती थी और न चाहते हुए भी व्यक्ति भोगों की ओर चला जाता था और होश आने पर पछताता था । योग मार्ग पर चलते चलते बहुत बार भटकता भी रहता था और फिर प्रायश्चित करते करते ग्लानि भाव में भी चले जाता था लेकिन जब प्रत्याहार सिद्ध हो जाता है तब फिर न तो भोगों की ओर ही उसकी गति होती है और न ही फिर कोई ग्लानि या भटकन ही होती है वह एकाग्र हो जाता है और फिर योग मार्ग पर वह निर्बाध रूप से आगे बढ़ने लग जाता है ।
सूत्र: ततः परमा वश्यतेन्द्रियाणाम्
प्रत्याहार से क्या फल है मिलता?
योगी को कैसा संबल है मिलता?
पूर्ण वशता इंद्रियों के ऊपर
परम दिव्यता प्रत्याहार के बल पर
योगी स्वयं में पाता है
स्वयं को आश्वस्त पाता है
ध्यान, धारणा सब सहज हो जाती
बुद्धि भी शुद्ध सात्विक समझ को पाती