Chapter 2 : Sadhana Pada
|| 2.45 ||

समाधिसिद्धिरीश्वरप्रणिधानात् 


पदच्छेद: समाधिसिद्धि:, ईश्वर- प्रणिधानात् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • ईश्वर- प्रणिधानात्-ईश्वर प्रणिधान से
  • समाधिसिद्धि:-समाधि की प्राप्ति हो जाती है ।

English

  • samadhi - oneness, integration
  • siddhih - perfection
  • Ishvara - God
  • pranidhanat - sacrificing, devotion

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: ईश्वर की भक्ति विशेष करने एवं फल की इच्छा किये बिना शुभ अशुभ सब प्रकार के कर्मों को ईश्वर में समर्पित करने से शीघ्र ही समाधि की प्राप्ति हो जाती है ।।

Sanskrit: 

English: By sacrificing all to God, samadhi is attained।

French: 

German: Hingabe an das Göttliche führt zu Samādhi ( der vollkommenen Erkenntnis)।

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Yog Sutra 2.45

Explanation/Sutr Vyakhya

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  • Yog Kavya

ईश्वर प्रणिधान, यह अंतिम अर्थात पांचवा नियम है । महर्षि कहते हैं कि, जब योगी ईश्वर प्रणिधान में पूर्णता को प्राप्त हो जाता है तो फल स्वरुप उसे समाधि की प्राप्ति हो जाती है । योग में ईश्वर प्रणिधान को कभी तो स्वतंत्र साधनरूप से कहा गया है और कभी किसी साधना का अंग विशेष बनाकर बताया गया है । इसलिए ईश्वर प्रणिधान अत्यंत महत्वपूर्ण साधन है योग में ।।

 

ईश्वर प्रणिधान, भक्ति की पराकाष्ठा है जहाँ पर योगी निरहंकारी होकर ईश्वर के शरणागत हो जाता है और अपने सभी कर्मों, चेष्टाओं और वृत्तियों को ईश्वर में अर्पण कर देता है । इस प्रकार भक्ति विशेष करता हुआ वह ऐसे जीता है जैसे उसके माध्यम से स्वयं भगवान जी रहे हों । उसकी स्वयं की इच्छा को भी वह ईश्वर की इच्छा में विलीन कर देता है, तब इस प्रकार उसकी स्वयं की सत्ता भी ईश्वर की सत्ता हो जाती है । ईश्वर तो नित्य समाधान में बरतता है अर्थात समाधि की अवस्था में रहता है तो योगी की भी समाधि लग जाती है । जब योगी अपनी सत्ता का अहंकार छोड़ देता है और ऐसे जीता है जैसे भगवान जीता है तो उसका ज्ञान भी ईश्वर के ज्ञान के सदृश हो जाता है अर्थात विवेकज्ञान हो जाता है । विवेकज्ञान होने से अविद्या का नाश हो जाता है और अविद्या के नाश के सभी पञ्च क्लेशो का भी नाश होकर तब योगी समाधि के लाभ को प्राप्त हो जाता है ।।

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सूत्र: समाधिसिद्धिरीश्वरप्रणिधानात्

 

ईश्वर की भक्ति आराधना करो

योगी तुम अष्टांग योग की साधना करो

सब कर्मों को ईश्वर अर्पण कर

हृदय में गहरा समर्पण भर

साधक समाधि की सिद्धि को पाओ

समाधिस्थ योगी की प्रसिद्धि को पाओ

योगी निमित्त मात्र बन , कर्म करे जब

हृदय में भक्ति-भाव का मर्म धरे जब 

सब पापों से रहित जो जाता

समाधि भाव के सहित हो जाता

ईश्वर प्रणिधान का यही फल जानो

समाधि लगने से चित्त निर्मल मानो

2 thoughts on “2.45”

  1. yashu says:

    great

    1. admin says:

      Thanks yash. Please share with others too.

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