Chapter 2 : Sadhana Pada
|| 2.14 ||

ते ह्लादपरितापफलाः पुण्यापुण्यहेतुत्वात्


पदच्छेद: ते , ह्लाद , परिताप , फलाः , पुण्य , अपुण्य , हेतुत्वात् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • ते - वे (जन्म, आयु और भोग)
  • ह्लाद - हर्ष
  • परिताप - शोकरूपी
  • फला: - फल (देते हैं, क्योंकि)
  • पुण्य - पुण्य और
  • अपुण्य - पाप (उनके यथाक्रम से)
  • हेतुत्वात् - कारण हैं ।

English

  • te - they
  • hlada - pleasure
  • paritapa - pain
  • falah - fruits
  • punya - virtue
  • apunya - vice
  • hetutvat - having as their cause.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: वे (जन्म, आयु और भोग) हर्ष शोकरूपी फल देते हैं, क्योंकि पुण्य और पाप उनके यथाक्रम से कारण हैं ।

Sanskrit: 

English: The karmas bear fruits of pleasure or pain, caused by virtue or vice.

French: Les karmas portent des fruits de plaisir ou de douleur causés par la vertu ou le vice.

German: Je nachdem, ob die Handlungen auf Erkenntnis oder einem Irrtum beruhen, wird das Ergebnis glücklich genossen oder bereut.

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Yog Sutra 2.14
Explanation 2.14
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Explanation/Sutr Vyakhya

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  • Yog Kavya

पिछले कर्मों के फल स्वरूप मिलने वाले वे जाति, आयु और भोग, सुख दुख रूपी फल देने वाले होते हैं।

क्योंकि सभी कर्मों के कर्माशय बनने में शुभ कर्म या पुण्य कर्म कारण होते हैं।

 

पुण्य से उत्पन्न कर्म सुख देने वाले और पाप से उत्पन्न कर्म दुख देने वाले होते हैं।

 

यहां प्रस्तुत सूत्र में महर्षि यही स्पष्ट कर रहे हैं कि कर्मों के पुण्य और पाप से उत्पन्न होने के कारण उनके फल भी सुख और दुख देने वाले होते हैं।

 

हम जो भी करते हैं उनका अवश्य रूप से कर्माशय बनता है। इसलिए हमें प्रयत्न करना चाहिए कि हमारे कर्मों के फ्लोन्मुख होने में पुण्य ही कारण बनें। धीरे धीरे साधना के मार्ग पर आगे बढ़ते रहने से फिर सकाम कर्मों को भी निष्काम कर्मों में बदलते चले जाएं।

 

गीता में कहा गया है कि इस संसार में ऐसा कोई भी मनुष्य नहीं है जो एक क्षण के लिए भी बिना कर्म किये रह सकता है। अतः कर्म करना तो नियति है ही, तब शुद्ध बुद्धि यही कहती है कि अच्छे कर्म करो।

 

ऐसे कर्म जिन्हें करने में स्वयं को सात्विक प्रसन्नता अनुभव होती हो और दूसरों का भी किसी प्रकार से अहित न होता हो। इस भावपूर्ण चेतना के साथ जब जम कर्मक्षेत्र में कदम रखते हैं तो ही आगे चलकर हम निष्काम कर्म करने में सक्षम हो पाएंगे।

 

कर्म शब्द इतना गहन है कि अत्यंत गहराई से चिंतन करने के बाद भी समझ में नहीं आता है। सामान्य मनुष्यों की तो क्या ही बात करें, बड़े बड़े चिंतनशील, विद्वान व्यक्ति भी कर्म की मीमांसा करने में स्वयं को अक्षम पाते हैं।

 

परिस्थिति, व्यवहार, सिद्धांत और चुनाव के कारण कर्म का स्वरूप और फल दोनों परिवर्तित हो जाता है। इसलिए प्रारंभ में यदि कुछ भी समझ न आता हो तो प्रयत्नपूर्वक अच्छे कर्म ही करने हैं, इतना सोचकर अच्छे कर्म करते रहो।

coming soon..
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सूत्र: ते ह्लादपरितापफलाः पुण्यापुण्यहेतुत्वात्

 

शोक विषाद पाप कर्म के फल हैं

हर्ष खुशी ये पुण्य के प्रतिफल हैं

जो कुछ जीवन ने भोग मिलेंगे

वे सब पाप पुण्य के प्रयोग मिलेंगे

इसलिए पाप कर्म कभी नहीं करना

शोक, विषाद और दुख से डरना

पुण्य कर्मों का आधार तुम धरना

शुभ ही शुभ का विस्तार तुम धरना

धीरे धीरे पुण्य से भी पार है जाना

निष्काम कर्म का विचार है पाना

विचार तब वह यथार्थ में बदलेगा

हर भाव तब निस्वार्थ में बदलेगा

इस प्रकार निष्काम कर्म की प्रतिष्ठा से

श्रद्धा, भक्ति और सदिच्छा से

योगी भव भय पार हो जायेंगे

अपने शुद्धतम स्वरूप को पाएंगे

One thought on “2.14”

  1. vaishnav says:

    after Shlok and सन्धि विच्छेद

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