जब आसन की सिद्धि हो जाती है और सम्यक प्रकार से प्राणायम का अभ्यास बढ़ने लग जाता है तब प्राणायाम के अभ्यास से विवेकज्ञान के ऊपर पड़ा अज्ञान का पर्दा धीरे धीरे हटने लग जाता है और प्रकाश बढ़ने लग जाता है । जितने अंश में प्राणायाम से अज्ञान के या अविद्या के आवरण का नाश होता है उतने ही अंश में योगी के भीतर विवेकज्ञान का प्रकाश भी होता जाता है ।
प्राणायाम के सतत अभ्यास से एक ओर शरीर की शुद्धि होती है वहीँ दूसरी ओर मन का की मलिनता भी धुलती जाती है । तन और मन के सभी विकारों का नाश होने से बुद्धि में भी निर्मलता आती है । बुद्धि में स्वयं को अलग और पुरुष को अलग देखने की क्षमता बढ़ती जाती है । पुरुष और बुद्धि का पृथक पृथक ज्ञान न हो पाना ही आवरण है और इसी आवरण का नाश प्राणायाम के द्वारा होता है ।
प्राणायाम के अभ्यास से मन और प्राण दोनों एक साथ नियंत्रण में आ जाते हैं जिससे एकाग्रता बढ़ती है । इन्द्रियों के ऊपर विशेष नियंत्रण आ जाता है । आसन सिद्ध होने के बाद जब प्राणायाम भी सध जाता है तो प्रत्याहार, धारणा, ध्यान में विशेष प्रगति होती है ।
सूत्र: ततः क्षीयते प्रकाशावरणम्
प्राणायाम से होता है क्या?
क्या पाता है! खोता है क्या?
जब नियंत्रण सांसों पर आता
अज्ञान का पर्दा तब गिर जाता
सब आवरण बाधाएं दूर हो जाती
विघ्न – वासनाएं चूर चूर हो जाती
तब शुद्ध ज्ञान का आविर्भाव है होता
सब दुर्मति, कुमति दुर्भाव है खोता