Chapter 2 : Sadhana Pada
|| 2.18 ||

प्रकाशक्रियास्थितिशीलं भूतेन्द्रियात्मकं भोगापवर्गार्थं दृश्यम्


पदच्छेद: प्रकाश , क्रिया , स्थिति , शीलम् , भूतेन्द्रिय , आत्मकम् , भोग , अपवर्ग , अर्थम् , दृश्यम् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi
  • प्रकाश - प्रकाश
  • क्रिया - क्रिया (और)
  • स्थिति - स्थिति (जिसका)
  • शीलम् - स्वभाव (है),
  • भूतेन्द्रिय - भूत और इन्द्रियाँ (जिसका)
  • आत्मकम् - स्वरूप (हैं, पुरुष के लिए)
  • भोग - भोग (और)
  • अपवर्ग - मुक्ति ही (जिसका)
  • अर्थम् - प्रयोजन (है, वह)
  • दृश्यम् - दृश्य (है) ।
English
  • prakasha - illumination
  • kriya - action
  • sthiti - inertia
  • shilam - having the nature of (illumination, action, inertia)
  • bhoota - the elements
  • endriya - sense organs
  • atmakam - consisting of (elements and senses)
  • bhoga - experience
  • apavarga - liberation, emancipation
  • artham - purpose
  • drishyam - the seen .

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: प्रकाश क्रिया और स्थिति जिसका स्वभाव है, भूत और इन्द्रियाँ जिसका स्वरूप हैं, पुरुष के लिए भोग और मुक्ति ही जिसका प्रयोजन है, वह दृश्य है ।

Sanskrit: 

English: The experienced is composed of elements and sense organs, is of the nature of illumination, action and inertia,whose purpose is to provide both experiences and emancipation to the Purusha.

French: 

German: Objekte haben drei Eigenschaften - Licht, Aktivität und Trägheit. Sie sind grobstofflich ( wie die Naturelemente ) oder feinstofflich ( wie die Sinnesorgane ). Sie haben die Wirkung, dass sie uns binden oder befreien.

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Yog Sutra 2.18
Explanation 2.18
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Explanation/Sutr Vyakhya

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  • Yog Kavya

दुख के स्वरूप एवं उसके कारण दृष्टा एवं दृश्य के अज्ञानजनित संयोग के बारे में बताने के बाद महर्षि दृश्य के स्वरूप में बताने के लिए इस सूत्र पर चर्चा कर रहे हैं।

 

अब हम अगले सूत्रों में दृश्य और दृष्टा के बारे में विस्तार से समझेंगे।

 

दृश्य: जो प्रकाशशील, क्रियाशील एवं स्थितिशील, भूत और इन्द्रिय स्वरूप है एवं पुरुष के किये भोग एवं अपवर्ग रूपी प्रयोजन द्वय को सिद्ध करता है, उसे दृश्य कहते हैं।

 

दृश्य को आप प्रकृति के नाम से भी कह सकते हैं। सरल अर्थों में कहें तो सत्त्व (प्रकाशशील), रजस (क्रियाशील) एवं तमस (स्थितिशील) से बना तत्त्व दृश्य कहलाता है। इसके साथ ही पृथ्वी आदि जो पांच महाभूत हैं और जो 10 इन्द्रिय (ज्ञानेन्द्रिय एवं कर्मेन्द्रिय) समूह है यह भी दृश्य कहलाता है।

दृश्य का यह सारा स्वरूप निष्प्रयोजन नहीं है अपितु यह जीवात्मा के लिए भोग और अपवर्ग सिद्ध करवाने के लिए है।

 

दृश्य पुरुष के लिए साधन स्वरूप है। और यह साधन योगियों के लिए भी है और सांसारिक लोगों के लिए भी है।

 

सांसारिक व्यक्तियों के भोग के लिए भी काम करता है और यदि कोई भोगों से छूटना चाहता है तो भी इसे अपवर्ग अर्थात मुक्ति प्रदान करने के लिए काम करता है। अतः एक ही साधन से दोनों प्रकार के लोगों के प्रयोजन को सिद्ध करता है दृश्य।

 

इस प्रस्तुत सूत्र में दृश्य के बारे में ठीक प्रकार से उसका स्वरूप बता दिया गया है।

 

साधक को चाहिए कि वह दृष्टा और दृश्य के स्वरूप को एक बार ठीक ठीक से समझ ले जिससे वह अपना प्रयोजन भी ठीक से निर्धारित कर ले और जिस साधन से अपवर्ग प्राप्त करना चाहता है उसे भी ठीक से जान ले जिससे वह उसका ठीक प्रकार उपयोग कर पाएं।

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सूत्र: प्रकाशक्रियास्थितिशीलं भूतेन्द्रियात्मकं भोगापवर्गार्थं दृश्यम् ।।2.18।।

सूत्र: विशेषाविशेषलिङ्गमात्रालिङ्गानि गुणपर्वाणि ।।2.19।।

 

दृश्य की परिभाषा अब कहते

जिसमें इंद्रियां रह रह कर बहते

प्रकाश, क्रिया और स्थिति स्वभाव की

जड़ स्वरूपा और चेतन अभाव की

दृश्य, भूत और इंद्रिय स्वरूप है जो

मूल प्रकृति के अनुरूप है जो

दो खास प्रयोजन दात्री है

भुक्ति मुक्ति प्रदात्री है

भोग दिलाती, गुण तीन कहाती 

अपवर्ग दिलाकर विलीन हो जाती

दृश्य के कुछ विभागमात्र कहे हैं

विशेष, अविशेष, अलिंग और लिंगमात्र कहे हैं

विभाग, भेद या अवस्था हैं ये

प्रकृति की ही व्यवस्था हैं ये

 

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