पूर्व के सूत्र में एक नया शब्द आया क्लेश अतः स्वाभाविक रूप से प्रश्न उठना था कि अब ये क्लेश क्या हैं और इनकी संख्या कितनी है।
महर्षि उक्त जिज्ञासा के उत्तर में सभी पञ्च क्लेशों के नाम गिनाते हैं।
ये हैं-
अविद्या
अस्मिता
राग
द्वेष
और अभिनिवेश
क्लेशों से महर्षि का क्या आशय है, इस बात समझाने के लिए महर्षि व्यास जी अपने योग दर्शन के भाष्य में कहते हैं कि ये पांच क्लेश पांच प्रकार के मिथ्याज्ञान हैं। अविद्या आदि ये पांच क्लेश व्यक्ति की अधर्म प्रवृति को बढ़ा देते हैं और इस प्रकार प्रवृति को कार्य रूप में। परिणित कर देते हैं।
अंततः व्यक्ति जन्म जन्मांतर कर्म फल के चक्रव्यूह में फंसता चले जाता है। जब तक प्रत्येक प्रवृति या कर्म के मूल में ये पांच कर्म होंगे मनुष्य बंधन से मुक्त नहीं हो सकता है।
जब तक अविद्या आदि क्लेश मूल में है किसी भी कर्म के व्यक्ति धर्माचरण से युक्त नहीं हो सकता है। समाधि की सिद्धि नहीं हो सकती है। साधक अपने सच्चे स्वरूप में स्थिति को प्राप्त नहीं कर सकता है।
अतः इस सूत्र में महर्षि ने संकेत रूप में पांच क्लेशों के केवल नाम यहां गिनाए हैं। आगे के सूत्रों में विस्तृत रूप से इन पांच क्लेशों के स्वरूप एवं उनके कार्यों के ऊपर बात की गई है।
सूत्र: अविद्यास्मितारागद्वेषाभिनिवेशाः क्लेशाः
अविद्या, अस्मिता और राग द्वेष
पांच क्लेशों में अंतिम “अभिनिवेश”
क्लेश सभी ये जीवन उलझाते हैं
निर्बल कर इन्हें क्रियायोग से
आओ जीवन सुलझाते हैं।
पांच प्रकार के मिथ्याज्ञान हैं ये
मानव को करते परेशान हैं ये
इन क्लेशों से योगी को लड़ना है
निरंतर योग पथ पर आगे बढ़ना है
जब योगी गतिमान है होता
निज पथ पर अभिमान है खोता
धीरे धीरे कैवल्य की ओर
वही होती जीवन की पहली भोर
पंच लिखना भूल गए है जी
Dhanyvad vishnu ji.. ise thik kar liya jayega