इससे पूर्व के सूत्र में बताया गया कि यदि संयोग का नाश हो जाने पर सब दुखों की निवृत्ति हो जाती है और इस स्थिति को योग की भाषा में हान कहते हैं । यही हान ही आत्मा का कैवल्य या मोक्ष है । अब प्रश्न उठता है कि इस हान स्थिति को पाने के लिए क्या मुख्य कारण है । हान की प्राप्ति के लिए क्या उपाय किया जाये ।
इसी प्रश्न के उत्तर में महर्षि बताते हैं कि- प्रकृति और पुरुष दोनों अलग अलग हैं जब यह ज्ञान एकदम निश्चित हो जाता है और आत्मा इस ज्ञान की प्रतीति को एक क्षण के लिए भी भूलता नहीं है अपितु इसमें ही उसकी बुद्धि बिना हिले डुले लगी रहती है तब यह ज्ञान दृढ हो जाता है । ऐसी परिपक्व अवस्था को महर्षि पतंजलि ने “ विवेक ख्याति ” नाम दिया है । विवेक ख्याति को प्राप्त करना ही ही हान प्राप्ति का उपाय है ।
योग दर्शन का स्वाध्याय करते करते इतना सामान्य ज्ञान तो हम सबको हो जाता है कि हमारे दुखों का कारण पुरुष और प्रकृति का संयोग है और इस संयोग का कारण अविद्या है । जब यह अविद्या हट जाएगी तब इस संयोग भी हट जाने से एक हान की स्थिति उत्पन्न होगी । और यही स्थिति आत्मा के लिए मोक्ष है । हान के उपाय के रूप में हमें इस ज्ञान की दृढ़ता चाहिए होगी जिससे हमारे भीतर विवेक ख्याति उत्पन्न हो और हम सदा सदा के लिए दुखों और दुःख का अधिष्ठान यह शरीर से मुक्त हो जाएँ । लेकिन यह सब कुछ शाब्दिक ज्ञान के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है । यह ज्ञान आत्मा के बिना का ज्ञान है क्योंकि इसमें अनुभव रूपी आत्मा ने अभी तक प्रवेश ही नहीं किया है । यह तो एक समझ मात्र है । जब तक इस ज्ञान की हमें गहरी प्रतीति नहीं हो जाती है, जब तक इस ज्ञान में हमारी दृढ स्थिति नहीं हो जाती है तब तक यह सबकुछ एक दिशा मात्र है जिसके साथ साथ हमें अपनी योग की यात्रा को आगे बढ़ाते रहना है । जिस क्षण यह ज्ञान हमारी अनुभूति, हमारी दृढ मान्यता या हमारे भीतर सत्य ज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित नहीं होता तब तक योग की यात्रा चलती रहेगी ।
इसलिए महर्षि कहते हैं कि पुरुष और प्रकृति के भेदज्ञान की अखंड प्रतीति, अनुभव, दृढ और परिपक्व स्थिति ही हान प्राप्ति का साधन है । तभी पूर्ण रूप से अलग अलग स्वरुप की उपलब्धि होगी और सबकुछ समाधान को प्राप्त हो जायेगा । प्रकृति भी पुरुष को उसके सच्चे स्वरुप के दर्शन कराकर स्वयं भी निवृत्त हो जाएगी ।
सिद्धांत-
सूत्र: विवेकख्यातिरविप्लवा हानोपायः
कैसे हान का भान सुझेगा?
जीवन का शाश्वत समाधान सुझेगा?
क्या विधि प्रक्रिया और उपाय करेंगे?
हम स्वयं और प्रभु क्या सहाय करेंगे?
निश्चल मति से जो ज्ञान बहेगा
निर्दोष बुद्धि का विज्ञान बहेगा
सही गलत का निर्णय जो करती
बुद्धि निश्चल अविरल जो बहती
यह स्थिति को विवेक ख्याति है
मति भक्ति शक्ति की सिद्धि लाती है
Hindi explanation is not of this shlok.. mistakenly copied of previous
Siddhant to likha hi nhi apne??!!
Hariom tatsat
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Jitendra Thapliyal
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