प्राणायाम के दुसरे लाभ की चर्चा यहाँ की जा रही है । प्राणायाम के निरंतर अनुष्ठान से जो मन के ऊपर विशेष नियन्त्रण आ जाता है उससे मन को कहीं भी एकाग्र करने का सामर्थ्य बढ़ जाता है । योगी जब चाहे मन को देह या देह के बाहर किसी भी स्थान में एकाग्र कर लेता है । प्रत्याहार, धारणा और ध्यान की उच्चतम स्थिति पाने के लिए चित्त का एकाग्र होना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि योग या तो एकाग्र अवस्था में घटित हो सकता है या फिर निरुद्ध अवस्था में । इसलिए आसन की सिद्धि के बाद प्राणायाम में विशेष गति होना अत्यन्त आवश्यक है ।
यदि मन एवं इन्द्रियों में नियंत्रण होगा तो ही प्रत्याहार सम्भव है और जब प्रत्याहार घटित होगा तभी किसी स्थान विशेष में धारणा लग पायेगी और योगी का ध्यान लग पायेगा । योग में सबकुछ परस्पर सम्बंधित है ।
सूत्र: धारणासु च योग्यता मनसः
मन की मलिनता, मन की चंचलता
सब दूर हो पाता मन की निर्मलता
मन की दौड़ाभागी, मन की मनमानी
सब मिट जाती है, मन की बेईमानी
मन का मौजीपन, मन की चपलता
प्राणायाम से अब मन और न मचलता
मन मालिक जो बन बैठा था
जब चाहो तो ऐंठा था
मन मालिक अब और न रहा
जीवात्मा का वो ठौर न रहा
जब चाहा तब मन को लगाया
अच्छे नौकर सम उसको पाया
जहां जिस बिंदु पर मन को टिकाया
ध्यान धारणा का सुंदर सुख पाया
मन एकाग्र हो, यह योग्यता आ जाती
जीवन में योग की सभ्यता आ जाती
From 2.42 no sutra display…
You will get it soon. Thanks for letting us know
Very nice and very informative & helpful for us 👍
Thank you kajal ji