Chapter 2 : Sadhana Pada
|| 2.48 ||

ततो द्वन्द्वानभिघातः 


पदच्छेद: तत:,द्वन्द्व:,अनभिघात: ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • तत: -आसन की सिद्धि हो जाने पर
  • द्वन्द्व: - सर्दी – गर्मी भूख- प्यास, लाभ- हानि आदि द्वंद्व
  • अनभिघात:-कम से कम अथवा पूर्ण रूप से नहीं सताते हैं।

English

  • tatah - then
  • dvandvah - the dualities
  • anabhighatah - being beyond disturbance.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: आसन के सिद्ध हो जाने पर साधक को सर्दी- गर्मी, भूख- प्यास, लाभ- हानि आदि द्वन्द्व आघात अर्थात कष्ट उत्पन्न नहीं करते हैं ।

Sanskrit:

English: Seat being conquered, one is undisturbed by the dualities.

French: 

German: Dadurch entsteht Widerstandskraft gegenüber der Wirkung von extremen Einflüssen.

Audio

Yog Sutra 2.48
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Explanation/Sutr Vyakhya

  • Hindi
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  • Yog Kavya

जैसे ही आसन सिद्ध हो जाता है तब योगी की सारी तन की और मन की विचलन समाप्त हो जाती है । जब योगी के शरीर और मन में किसी भी प्रकार का विचलन नहीं रहता है तब वह सब प्रकार के द्वंदों से मुक्त हो जाता है । जब वह आसनस्थ होता है तब शरीर में किसी भी प्रकार की गतिविधि नहीं होती है और मन के परमात्मा में लगे होने से भी मन में किसी प्रकार की गतिविधि नहीं होती है । इस प्रकार न भूख-प्यास, लाभ-हानि, जय-पराजय आदि द्वंद्व नहीं सताते हैं । आसन के सिद्ध हो जाने के बाद भी उसके दैनिक जीवन में भी द्वंद्व योगी को नहीं सताते हैं । उसके जीवन में एक विशेष दृढ़ता आ जाती है । जो द्वंद्व शरीर को सताते की क्षमता रखते थे, उनका असर अब शरीर पर कम होने लगता है । जैसे सर्दी-गर्मी

 

ऐसे द्वंद्व जो मन को सताते हैं वे अब मन पर असर कम या पूर्ण रूप से बंद कर देते हैं । जैसे – लाभ-हानि, जय-पराजय मान-अपमान आदि । क्योंकि आसन के समय मन का परमात्मा में लगे रहने से उसमें किसी प्रकार का अब विचलन नहीं होता है ।

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3 thoughts on “2.48”

  1. ashok parmar says:

    good work

    1. admin says:

      Thank you ashok kumar ji. Please share with others as well

  2. Aanchal Chadha says:

    Very nice work

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