जैसे ही आसन सिद्ध हो जाता है तब योगी की सारी तन की और मन की विचलन समाप्त हो जाती है । जब योगी के शरीर और मन में किसी भी प्रकार का विचलन नहीं रहता है तब वह सब प्रकार के द्वंदों से मुक्त हो जाता है । जब वह आसनस्थ होता है तब शरीर में किसी भी प्रकार की गतिविधि नहीं होती है और मन के परमात्मा में लगे होने से भी मन में किसी प्रकार की गतिविधि नहीं होती है । इस प्रकार न भूख-प्यास, लाभ-हानि, जय-पराजय आदि द्वंद्व नहीं सताते हैं । आसन के सिद्ध हो जाने के बाद भी उसके दैनिक जीवन में भी द्वंद्व योगी को नहीं सताते हैं । उसके जीवन में एक विशेष दृढ़ता आ जाती है । जो द्वंद्व शरीर को सताते की क्षमता रखते थे, उनका असर अब शरीर पर कम होने लगता है । जैसे सर्दी-गर्मी
ऐसे द्वंद्व जो मन को सताते हैं वे अब मन पर असर कम या पूर्ण रूप से बंद कर देते हैं । जैसे – लाभ-हानि, जय-पराजय मान-अपमान आदि । क्योंकि आसन के समय मन का परमात्मा में लगे रहने से उसमें किसी प्रकार का अब विचलन नहीं होता है ।
good work
Thank you ashok kumar ji. Please share with others as well
Very nice work