Chapter 2 : Sadhana Pada
|| 2.30 ||

अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः


पदच्छेद: अहिंसा , सत्य , अस्तेय , ब्रह्मचर्य , अपरिग्रहा: , यमाः॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • अहिंसा - अहिंसा
  • सत्य - यथार्थ ज्ञान
  • अस्तेय - अस्तेय(चाेरी का अभाव)
  • ब्रह्मचर्य - ब्रह्मचर्य (और)
  • अपरिग्रहा: - अपरिग्रह(संग्रह का अभाव) -
  • यमाः - (ये पाँच) यम हैं ।

English

  • ahinsa - non-violence
  • satya - truth fulness
  • asteya - non-stealing
  • brahmacharya - continence
  • aparigraha - non-possessiveness, non-greed
  • yamah - yama, abstinence

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: अहिंसा, यथार्थ ज्ञान, अस्तेय(चाेरी का अभाव), ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह(संग्रह का अभाव) - ये पाँच यम हैं ।

Sanskrit: 

English: Ahimsa, Satya, Asteya(non-stealing), Bramacharya and Aparigraha (non-greed) - are the five Yamas.

French: 

German: Yama ( die Disziplinen im zwischenmenschlichen Verhalten ) umfassen Gewaltlosigkeit, Wahrhaftigkeit, Nicht-Stehlen, Handeln im Bewusstsein des Brahma ( der Allseele ) und Anspruchslosigkeit.>

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Yog Sutra 2.30
Explanation 2.30
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Explanation/Sutr Vyakhya

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  • Yog Kavya

अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह ये पांच यम हैं । आईये इन्हें विस्तार पूर्वक समझने का प्रयास करते हैं और स्वयं के जीवन में इनका पालन किस विधि और निषेध से संभव हो सकता है उस पर एक सार्थक दृष्टि डालते हैं ।

1.अहिंसा:- मन, वचन एवं कर्म से किसी भी प्राणी  के प्रति वैरभाव नहीं रखना अहिंसा कहलाता है । यह अहिंसा भाव रूप में भी होनी चाहिए और क्रिया में भी दिखनी चाहिए | ऐसा न हो कि भाव तो अहिंसा का रखते हैं लेकिन क्रिया रूप में हिंसा हो रही है अतः भाव और क्रिया रूप से किसी भी प्राणी को (मनुष्य हो या पशु, पक्षी या अन्य कीट पतंग)  को  मन, वाणी और कर्म से किसी भी प्रकार से जानबुझकर कष्ट नहीं देना अहिंसा कहलाता है ।

2.सत्य:- किसी भी वस्तु, व्यक्ति या स्थान के विषय में हम जो कुछ या जैसा भी जानते, समझते और मानते और सुनते  हैं  वाणी से उसी रूप व्यक्त करना ही सत्य कहलाता है । जाने, समझे, अनुभव एवं माने गए विषयों की यथार्त अभिव्यक्ति को सत्य कहते हैं | अपनी ओर से कुछ भी बढ़ा या घटाकर बोलना असत्य हो जाता है | यह अत्यंत सूक्ष्म और विशाल बिषय है जिस पर आगे विस्तार से चर्चा करेंगे ।

 

3.अस्तेय:- सामान्य शब्दों में कहें तो चोरी नहीं करने का भाव अस्तेय कहलाता है । सांसारिक व्यवस्था के अंतर्गत सभी संसाधनों का स्वामित्व किसी न किसी के पास होता ही है अतः बिना स्वामी से पूछे किसी भी वस्तु को न लेना अस्तेय कहलाता है ।

दूसरा अर्थ है कि मन, वचन और कर्म से किसी दुसरे की वस्तु को अपना न मानना अस्तेय कहलाता है । आप मन ही मन तो दुसरे की वस्तु या संसाधन पर दृष्टि रखते हैं लेकिन भौतिक रूप से उस वस्तु या संसाधन को लेते नहीं तो यह अस्तेय नहीं कहा जायेगा | इसलिए भाव और क्रिया की एकरूपता  तो सभी यमों के विषय में एक समान लागू होती है ।

 

4.ब्रह्मचर्य:– ब्रह्मचर्य का अर्थ है ब्रह्म जैसी चर्या में अपने जीवन को पालना । यह इसकी अत्यन्त गहरी और समग्र व्याख्या है । भाव रूप में स्वयं को ब्रह्म की दिनचर्या के लिए तैयार करना और क्रिया रूप में विधि और निषेध की साधना से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए | अपनी जीवनी एवं सृजनात्मक शक्ति वीर्य का रक्षण करना, ईश्वर की आराधना, स्तुति करना एवं सम्बन्धो की शुचिता रखना ब्रह्मचर्य का क्रियात्मक साधना है |

 

5.अपरिग्रह:-जीवन निर्वाह के मध्य विभिन्न संसाधनों का उपयोग एवं प्रयोग स्वाभाविक है, और जितने की आवश्यकता से मनुष्य का कर्मक्षेत्र अबाधित रूप से गतिमान होता हो तो उससे अधिक संसाधनों के संग्रह की प्रवृत्ति नहीं करनी चाहिए यही अपरिग्रह है

 

अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह इन पांच यमो की समान्य व्याख्या कर दी है, आगे जब प्रत्येक यम के लाभ की चर्चा की जाएगी तब और अधिक विस्तार से बता दिया जायेगा |

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सूत्र: अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः

 

यम के भीतर क्या क्या आते हैं

महर्षि पाँच भावों के नाम गिनाते हैं

अहिंसा-सत्य और अस्तेय को

ब्रह्मचर्य-अपरिग्रह रूपी ध्येय को

जिसने अनुष्ठान का विषय बनाया

उसी ने जीवन सुखमय पाया

इन पाँच व्रतों से है जीवन संवरता

संसारी-कुकर्मों का दानव है मरता

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