प्रस्तुत सूत्र में महर्षि यह बतलाते हैं कि यदि कर्मो का आधार क्लेश बने हैं तो उनके संस्कार चित्त में अंकित हो जाएंगे और तब उन कर्मों का फल जाति, आयु और भोग के रूप में मिलेगा।
यहां अब प्रश्न उठता है कि ये जाति, आयु और भोग क्या होता है?
जाति: जाति से यहां मतलब कोई ब्राह्मण, यादव, अहीर या समाज में व्याप्त अलग जातियों से नहीं है अपितु यह योग में एक पारिभाषिक शब्द है । योग में जहां जहां भी जाति शब्द का प्रयोग होगा तो उससे मनुष्य जाति, पशु-पक्षियों की जाति, कीट पतंगों की जाति समझना चाहिए। विभिन्न एक जैसे जीवों के वर्गीकरण को जाति कह सकते हैं।
जब कर्म फल देने की स्थिति में आ जाते हैं तब वे तीन प्रकार से फल देते हैं। जाति, आयु और भोग के रूप में। कोई भी क्लेश युक्त कर्म भविष्य में इन्हीं तीन रूपों में फल देगा।
या तो कर्म मनुष्य जाति में लेकर जाएगा या फिर पशु-पक्षी, कीट पतंगों की जाति में
आयु: जाति के अनुसार ही सबकी आयु भी निश्चित है। यदि मनुष्य जाति में जन्म होगा तो लगभग 100 वर्ष की आयु या फिर कर्मों के अनुसार तय आयु (कम या अधिक कुछ भी हो सकती है) मिलेगी। इसी प्रकार से पशु पक्षियों, कीट पतंगों की भी उनकी जाति के अनुसार आयु समझ लेनी चाहिए।
भोग: कर्मो के फल के रूप में तीसरी चीज मिलती है भोग (सुख-दुख) या सुख दुख भोगने के साधन। जैसे कर्म होंगे उन्हीं के अनुसार सुख-दुःख की भी मात्रा निश्चित होगी। जिन कर्मों के द्वारा जितना दुख मिलना होगा वे मिलकर रहेंगे और जिन अच्छे कर्मों के द्वारा सुख मिलना होगा वह भी मिलकर रहेगा।
इनके अतिरिक्त वर्तमान जीवन में क्रियमाण कर्मों के द्वारा उसी जीवन में जो कुछ फल (सुख और दुख के रूप में ) मिलना होगा वे भी जाति के अनुसार मिलता जाएगा।
इसमें यह भी समझना आवश्यक है कि केवल मनुष्य एक ऐसी योनि है जहाँ पूर्व संचित कर्मों के संस्कारों के कारण सुख दुख रूप फल भोगने के साथ नए कर्माशय (सकाम-निष्काम) भी बनते हैं। मनुष्य योनि से भिन्न जो भी जातियां है वे केवल भोग योनियां है। वे केवल पूर्व के संस्कारों के फल को भोगकर उस योनि से छूट जाती हैं।
इसका मुख्य कारण है कि मनुष्य नए कर्मों को करने के लिए स्वतंत्र है लेकिन मनुष्य से भिन्न भोग योनियां नए कर्म नहीं बनाती है, वे पुराने संस्कारो को केवल भोगने आती है।
सूत्र: सति मूले तद्विपाको जात्यायुर्भोगाः
क्लेशमूल कर्म कैसे परिणाम हैं देंगे
जाति आयु भोग वे तीन आयाम हैं देंगे
जीव जंतु या फिर कीड़े मकोड़े
आदमी, गधा या फिर हाथी घोड़े
क्लेश कर्म ये भी तय करेंगे
आयु कितनी मिलेगी ये निश्चय करेंगे
समय और मात्रा में भोग मिलेगा
जीवन में सहयोग असहयोग मिले
जीवन की यही विचित्रता है
कभी दुश्मनी तो कभी मित्रता है
अच्छे बुरे भाव इसी से
राग तो कभी द्वेष किसी से
कभी अहम तो कभी बहम है
कभी अनिश्चय कभी भरम है