Chapter 2 : Sadhana Pada
|| 2.49 ||

तस्मिन्सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः 


पदच्छेद: तस्मिन् सति, श्वास,प्रश्वासयो: गतिविच्छेद: प्राणायाम:॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • तस्मिन् सति-आसन की सिद्धि हो जाने पर
  • श्वास -प्राणवायु को अन्दर लेने (पूरक) व
  • प्रश्वासयो: -प्राणवायु को बाहर छोड़ने की (रेचक)
  • गतिविच्छेद: -सहज गति को अपने सामर्थ्य अनुरूप रोक देना या स्थिर कर देना ही
  • प्राणायाम: -प्राणायाम कहलाता है ।

English

  • tasmin - in this
  • sati - being accomplished
  • shvasa - inhalation
  • prashvasayo - exhalation
  • gati - flow
  • vichchhedah - cessation
  • pranayamah - breath regulation, pranayama.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: आसन की सिद्धि हो जाने पर प्राणवायु को अन्दर लेने (पूरक) व प्राणवायु को बाहर छोड़ने की (रेचक) की सहज गति को अपने सामर्थ्य अनुरूप रोक देना या स्थिर कर देना ही प्राणायाम कहलाता है ।

Sanskrit:

English: Controlling the motion of the exhalation and the inhalation once this (asana) is accomplished. This is pranayama.



French: 

German: Wenn der Fluss des üblichen Atems - unter der Voraussetzung einer guten Körperhaltung - ausgedehnt wird, dann ist das Prānāyāma, die Atemtechnik des Yoga.

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Yog Sutra 2.49
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Explanation/Sutr Vyakhya

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  • Yog Kavya

अब महर्षि आसन किए सिद्ध हो जाने पर कसी प्राणायाम करना है उसे बताते हैं । इस सूत्र से भी स्पष्ट है कि महर्षि आसन की सिद्धि प्राणायाम से पूर्व मानते हैं । अतः साधकों को आसन की सिद्धि पर विशेष रूप से कार्य करना चाहिए जिससे वे प्राणायाम का ठीक ठीक से अभ्यास कर सकें ।

 

योगी जब पद्मासन, सुखासन या सिद्धासन में अधिक देर तक स्थिरता पूर्वक एवं सुख लेता हुआ बैठने में समर्थ हो जाता है तब उसके श्वास और प्रश्वास की गति को रोक देने की प्रक्रिया को प्राणायाम कहते हैं ।

 

यदि योगी स्थिरता से बैठा हुआ है और उसने श्वास भीतर ली हुई है, तब श्वास को वहीँ के वहीँ रोक देने को प्राणायाम कहेंगे । यदि योगी ने श्वास बाहर छोड़ी हुई है तो उसे बाहर वहीँ रोक देना भी प्राणायाम कहेंगे । अब यह अभ्यास पर निर्भर करेगा कि योगी कितनी देर तक श्वास को रोक कर रख सकता है । अभ्यास से प्राणायाम की अवधि बढ़ाते जाते हैं । यही प्राणायाम की परिभाषा है । प्राणायाम के कितने प्रकार हैं ये अगले सूत्र में बताएँगे ।

 

प्राणायाम को सबसे बड़ा तप कहा गया है क्योंकि आती-जाती सांसों को रोकने में जो पुरुषार्थ करना पड़ता है और उस स्थिति में बने रहने में जो पुरुषार्थ है, उसमें बहुत तप लगता है ।

 

प्राणायाम से पूर्व आसन की सिद्धि अनिवार्य बताई है, इसके पीछे एक महत्त्वपूर्ण कारण है-

आसन करते समय मन को परमात्मा में लगाने के लिए महर्षि ने निर्देश किया है । इस प्रकार आसन की सिद्धि होने पर मन का नियंत्रण भी साथ साथ में हो जाता है । मन और प्राण का सम्बन्ध गहरे में जुड़ा हुआ है । मन यदि शांत है तो प्राण भी शांत होते हैं और यदि प्राणों में स्थिरता होती है तो मन भी स्थिर बना रहता है । मन में यदि किसी प्रकार से चंचलता है तो प्राण भी चंचल होने लगते हैं । और इसी प्रकार प्राणों के चंचलता से युक्त होने पर मन भी चंचल हो जाता है । चूँकि आसन की सिद्धि से तन के साथ मन भी स्थिर हो जाता है और जब स्थिर तन और स्थिर मन के साथ प्राणायाम का अभ्यास किया जाता है तो प्राणों को स्थिर करना आसान हो जाता है । तब आप चारों प्राणायाम का अभ्यास अच्छी प्रकार से करने में सक्षम हो जाते हैं, यही कारण है कि आसन की सिद्धि प्राणायाम और आगे ध्यान, धारणा के लिए अत्यंत उपयोगी और आवश्यक है ।

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सूत्र: तस्मिन्सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेदः प्राणायामः

 

यह जीवन प्राणों पे टिका है

जितने श्वास उतना ही जीवन लिखा है

भीतर जाती श्वास पूरक कहलाती

यदि छोड़ें तो रेचक कहलाती

जब पूरक रेचक नियंत्रित होती

ॐ के जाप से अभिमंत्रित होती

बलपूर्वक पूरक अवरुद्ध कर देते

योगी आत्मिक बल का आलंबन लेते

श्वास बाहर जब छोड़ दिया

तब बाहर ही उसको रोक दिया

ऐसा क्रमिक प्रयास श्वासों के ऊपर

करके विश्वास अपने गुरु प्रभुपर

प्राणों के नूतन आयाम को छूता

योगी सब पापों से रह जाता अछूता

3 thoughts on “2.49”

  1. Anjali sukla baidya says:

    Nice

    1. admin says:

      Thanks anjali ji

  2. Asha kachhawaha says:

    Itna sundar yogsutra ka varnan mene kahi nhi padha..

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