Chapter 2 : Sadhana Pada
|| 2.44 ||

स्वाध्यायाद् इष्टदेवतासंप्रयोगः 


पदच्छेद: स्वाध्यायात् -इष्टदेवता-सम्प्रयोग:॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • स्वाध्यायात्-सद्ग्रन्थों एवं गुरुमुख से सुने ज्ञान का अध्ययन करने से
  • इष्टदेवता-विद्वान, ऋषि-मुनि एवं योग एवं स्वाध्यायनिष्ठ योगियों से
  • सम्प्रयोग:-उनका साक्षात् दर्शन एवं उनकी अनुकम्पा प्राप्त हो जाती है।

English

  • svadhyayat - self study
  • Ishta - chosen
  • devata - deity
  • sanprayogah - communion, connected with

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi:

Sanskrit: 

English: From study and by repetition of the mantras comes communion with one's chosen deity

French: 

German: Das Selbststudium führt zu einer Verbindung mit Bildern und Themen, die uns auf den spirituellen Weg lenken können

Audio

Yog Sutra 2.44

Explanation/Sutr Vyakhya

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  • Yog Kavya

चौथे नियम स्वाध्याय के फल की चर्चा यहाँ की जा रही है । तप के बाद स्वाध्याय भी क्रिया योग का भाग रहा है और अब अष्टांग योग के नियम का भी भाग है । दो बार इसकी चर्चा होने से यह महत्वपूर्ण हो जाता है ।

 

>ऐसे ग्रन्थ या साहित्य जो हमें योग मार्ग पर आगे बढ़ाने में सहायक होते हैं, उनका अध्ययन या अध्यापन करना स्वाध्याय कहलाता है । ऐसे ग्रन्थ जो मुक्ति कि बात करते हों, योग मार्ग की बाधाओं से बचाते हों, उनका अध्ययन और अध्यापन करना स्वाध्याय कहलाता है । ऋषि-मुनि एवं गुरुओं के आप्त वचनों को सुनना और सुनाना या उनपर  चिंतन और मनन करना स्वाध्याय कहलाता है । गायत्री और ओंकार जैसे वैदिक मन्त्रों का अर्थपूर्वक जाप करना भी स्वाध्याय कहलाता है ।

स्वाध्याय एक ऐसी प्रकिया और साधन है जिसके माध्यम से योगी क्रियात्मक रूप से योग न करता हुआ भी योग में बरत रहा होता है । स्वाध्याय योगी की प्रवृत्ति को योग मार्ग पर लगाये रखता है, उसे योग के वातावरण से युक्त रखता है । जो साधक स्वाध्याय का अवलंबन नहीं लेते वे धीरे धीरे योग मार्ग से कब विमुख हो जाते हैं उन्हें भी पता ही नहीं चलता है ।

 

शास्त्रों में ऐसा लिखा है कि योग और स्वाध्याय इन दो साधनों का आश्रय लेते हुए धीरे धीरे परमात्मा प्रकाशित हो जाता है । जब योग करके थक जाएँ तो स्वाध्याय करें और जब स्वाध्याय करते करते थक जाएँ तब पुनः योग कर लें । इस प्रकार योग और स्वाध्याय दोनों का बारी बारी अभ्यास से परमात्मा भी प्रकाशित हो जाता है अर्थात भगवान साधक के ह्रदय में प्रकट हो जाते हैं ।

 

जब जीवन से योग और स्वाध्याय का अजस्र प्रवाह चलता है तब संसार के लिए समय समाप्त हो जाता है । अतः जब योगी इस प्रकार योग और स्वाध्याय में पूर्ण रूप से स्थित हो जाता है तब वह जिसे अपना इष्ट देवता समझता है, उनके दर्शन पा जाता है । स्वध्य्याय करते करते योगी की जिस महापुरुष, देवताओं में, या ऋषि-मुनियों में अतिशय श्रद्धा उत्पन्न होती है, उनके दिव्य दर्शन होने लग जाते हैं । साथ ही उनका अप्रत्यक्ष रूप से आशीर्वाद प्राप्त होने लग जाता है और वे उसकी प्रत्येक कार्य में सहायता करने लग जाते हैं ।

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सूत्र: स्वाध्यायाद् इष्टदेवतासंप्रयोगः

 

गुरु वचनों का मान करो

सद्ग्रन्थों का रसपान करो

ओंकार गायत्री के जप से

अध्ययन-अध्यापन के तप से

आराध्य देव मिल जाएंगे

सब कार्य सफल हो जाएंगे

8 thoughts on “2.44”

  1. Snehal says:

    Good to read ! I am happy to go though these sutras

    1. admin says:

      Thank you snehal. Please help us reach larger audiences. Share with your loved ones

  2. Komal says:

    I want to learn Patanjali yoga sutra and pls allow me

    1. admin says:

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  3. Priti singh says:

    Bahut hi ache s apne explain kiyaa h koi v samjh skta h ise read karke thanku so much

  4. Priti singh says:

    Bahut hi aache s explain kiyaa h apne dhanyawad

  5. Garima Bohra says:

    Something is wrong, it’s written जब स्वाध्याय करते करते थक जाएँ तब स्वाध्याय कर लें । Which needs correction

    1. admin says:

      धन्यवाद गरिमा जी , स्वाध्याय की जगह योग होना चाहिए था, अभी ठीक कर दिया है

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