चौथे नियम स्वाध्याय के फल की चर्चा यहाँ की जा रही है । तप के बाद स्वाध्याय भी क्रिया योग का भाग रहा है और अब अष्टांग योग के नियम का भी भाग है । दो बार इसकी चर्चा होने से यह महत्वपूर्ण हो जाता है ।
>ऐसे ग्रन्थ या साहित्य जो हमें योग मार्ग पर आगे बढ़ाने में सहायक होते हैं, उनका अध्ययन या अध्यापन करना स्वाध्याय कहलाता है । ऐसे ग्रन्थ जो मुक्ति कि बात करते हों, योग मार्ग की बाधाओं से बचाते हों, उनका अध्ययन और अध्यापन करना स्वाध्याय कहलाता है । ऋषि-मुनि एवं गुरुओं के आप्त वचनों को सुनना और सुनाना या उनपर चिंतन और मनन करना स्वाध्याय कहलाता है । गायत्री और ओंकार जैसे वैदिक मन्त्रों का अर्थपूर्वक जाप करना भी स्वाध्याय कहलाता है ।
स्वाध्याय एक ऐसी प्रकिया और साधन है जिसके माध्यम से योगी क्रियात्मक रूप से योग न करता हुआ भी योग में बरत रहा होता है । स्वाध्याय योगी की प्रवृत्ति को योग मार्ग पर लगाये रखता है, उसे योग के वातावरण से युक्त रखता है । जो साधक स्वाध्याय का अवलंबन नहीं लेते वे धीरे धीरे योग मार्ग से कब विमुख हो जाते हैं उन्हें भी पता ही नहीं चलता है ।
शास्त्रों में ऐसा लिखा है कि योग और स्वाध्याय इन दो साधनों का आश्रय लेते हुए धीरे धीरे परमात्मा प्रकाशित हो जाता है । जब योग करके थक जाएँ तो स्वाध्याय करें और जब स्वाध्याय करते करते थक जाएँ तब पुनः योग कर लें । इस प्रकार योग और स्वाध्याय दोनों का बारी बारी अभ्यास से परमात्मा भी प्रकाशित हो जाता है अर्थात भगवान साधक के ह्रदय में प्रकट हो जाते हैं ।
जब जीवन से योग और स्वाध्याय का अजस्र प्रवाह चलता है तब संसार के लिए समय समाप्त हो जाता है । अतः जब योगी इस प्रकार योग और स्वाध्याय में पूर्ण रूप से स्थित हो जाता है तब वह जिसे अपना इष्ट देवता समझता है, उनके दर्शन पा जाता है । स्वध्य्याय करते करते योगी की जिस महापुरुष, देवताओं में, या ऋषि-मुनियों में अतिशय श्रद्धा उत्पन्न होती है, उनके दिव्य दर्शन होने लग जाते हैं । साथ ही उनका अप्रत्यक्ष रूप से आशीर्वाद प्राप्त होने लग जाता है और वे उसकी प्रत्येक कार्य में सहायता करने लग जाते हैं ।
सूत्र: स्वाध्यायाद् इष्टदेवतासंप्रयोगः
गुरु वचनों का मान करो
सद्ग्रन्थों का रसपान करो
ओंकार गायत्री के जप से
अध्ययन-अध्यापन के तप से
आराध्य देव मिल जाएंगे
सब कार्य सफल हो जाएंगे
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Bahut hi ache s apne explain kiyaa h koi v samjh skta h ise read karke thanku so much
Bahut hi aache s explain kiyaa h apne dhanyawad
Something is wrong, it’s written जब स्वाध्याय करते करते थक जाएँ तब स्वाध्याय कर लें । Which needs correction
धन्यवाद गरिमा जी , स्वाध्याय की जगह योग होना चाहिए था, अभी ठीक कर दिया है