Chapter 2 : Sadhana Pada
|| 2.10 ||

॥ ते प्रतिप्रसवहेयाः सूक्ष्माः


पदच्छेद: ते , प्रतिप्रसव , हेयाः , सूक्ष्माः॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • ते - वे (पूर्वोक्त पाँच क्लेस, जो क्रिया योग से)
  • सूक्ष्मा: - सूक्ष्मावस्था को प्राप्त हैं,
  • प्रतिप्रसव - चित्त को अपने कारण में विलीन करने के साधन द्वारा
  • हेया: - नष्ट करने योग्य हैं ।

English

  • te - these
  • pratiprasava - resolving back into the cause from which they arose
  • heyah - reduced, eliminated
  • sookshmah - subtle

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: वे पूर्वोक्त पाँच क्लेस, जो क्रिया योग से सूक्ष्मावस्था को प्राप्त हैं, चित्त को अपने कारण में विलीन करने के साधन द्वारा नष्ट करने योग्य हैं ।

Sanskrit: 

English: The subtle klesas are to be conquered by resolving them into their causal state.

French: Les klesas subtils doivent être conquis en les résolvant dans leur état causal.

German: Auch wenn die Kleśas ( die störenden Kräfte ) nur schlummern, ist es wichtig, ihrem Gedeihen entgegenzuwirken

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Yog Sutra 2.10
Explanation 2.10
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Explanation/Sutr Vyakhya

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पूर्व के सूत्र संख्या 3 से लेकर 9 तक महर्षि पतंजलि ने पञ्च क्लेशों के स्वरूप एवं कार्यों के विषय में विस्तार से समझाया।

 

शिष्यों द्वारा क्लेशों को ठीक से जान लेने के बाद उनके मन में जिज्ञासा हुई कि ये क्लेश तो बहुत खतरनाक हैं, इनके कारण तो पूरा जीवन ही अस्त व्यस्त हुआ पड़ा है। सारे बंधन और दुखों का कारण भी यहीं है तो अब इनका सर्वथा नाश किस प्रकार सम्भव है।

 

क्या क्रियायोग से केवल इन्हें तनु ही किया जा सकता है या कोई और उपाय भी है। शिष्यों को उत्तर देते हुए महर्षि कहते हैं कि- ये अविद्या आदि पञ्च क्लेश अत्यंत सूक्ष्म हैं। ये चित्त रूपी जिस प्रकृति से उत्पन्न हुए हैं, उसी में लीन होने योग्य होने से त्याज्य हैं।

 

योग साधना में जो बाधक तत्त्व हैं उन्हें उनके कारण में लीन करना होता है और जो समाधि में सहायक तत्त्व हैं उनकी अभिव्यक्ति करनी होती है। साधक को यह समझना बहुत आवश्यक है कि कौन से दुर्गुण किस कारण में जाकर लीन होंगे और कौन से सहायक तत्त्व या भाव किस कारण से अभिव्यक्त होंगे।

 

योग मार्ग में कुछ भी नष्ट नहीं होता, सिर्फ लीन हो जाता है। जो जिससे उत्पन्न है उसी में जाकर उसका विलय होना ही नष्ट होना कहा जाता है।

 

अतः एक दृष्टि रखनी होती है कि हमें अपने दुर्गुणों, विकारों, कुसंस्कारों, बुरी आदतों को उनके कारण में लीन करा देना है और जो कुछ शुभ है, अच्छे संस्कार हैं उन्हें अभिव्यक्त करना है।

 

>इसी एक सोच और दृष्टि से साधक योग मार्ग पर आगे बढ़ने लगे जाता है।

 

जैसे ही पञ्च क्लेश, चित्त के साथ प्रकृति में लीन हो जाते हैं, योगी विकार रहित होकर समाधि की अवस्था को प्राप्त हो जाता है। ईश्वर के साहचर्य को प्राप्त करता हुआ नित्य आंनद में रमण करता है। समाधान की स्थिति में जीता है, जीवन मुक्ति के साथ जीता है।

coming soon..
coming soon..
coming soon..
coming soon..

सूत्र: ते प्रतिप्रसवहेयाः सूक्ष्माः

 

पञ्च क्लेश जीवन दुखमय करते

इनसे पार पाने का दम जो भरते

वे क्रिया योग का अभ्यास करें

ईश्वर प्रणिधान का विश्वास भरें

पहले क्लेश बलहीन ये होंगे

सूक्ष्म, तनु या महीन ये होंगे

पूर्ण नाश इनका कब होगा

चित्त विलीन कारण में जब होगा

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