Chapter 2 : Sadhana Pada
|| 2.17 ||

द्रष्टृदृश्ययोः संयोगो हेयहेतुः


पदच्छेद: द्रष्टृ , दृश्ययोः , संयोग: , हेय: , हेतुः ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • द्रष्टृ - द्रष्टा (और)
  • दृश्ययो: - दृश्य का
  • संयोगः - संयोग (उक्त)
  • हेयः - दु:ख का
  • हेतु: - कारण है ।

English

  • drashtri - seer
  • drishyayoh - seen
  • sanyogah - union
  • heya - avoided
  • hetuh - the cause.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: द्रष्टा और दृश्य का संयोग उक्त दु:ख का कारण है ।

Sanskrit: 

English: The cause of that which is to be avoided is the union of the Seer(subject) and the seen(object).

French: La cause de ce qui doit être évité est l'union du Voyant (sujet) et du vu (objet)

German: Die Ursache des Leidens ist Samyoga, die Anbindung des sehenden Selbst an das Objekt, das gesehen wird.

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Yog Sutra 2.17
Explanation 2.17
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Explanation/Sutr Vyakhya

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  • Yog Kavya

योग में दुःख को हेय के नाम से कहा गया है। इससे पूर्व के सूत्र में महर्षि हेय (भविष्य में आने वाले दुख) को छोड़ने के लिए कहते हैं।

 

अब पर दो प्रश्न उठते हैं कि-

 

इस दुःख का कारण क्या है?

और

इस दुःख को कैसे हटाया जाए।

 

अतः महर्षि दुःख के कारण को बताने के लिए इस सूत्र की रचना करते हैं।

 

दृष्टा और दृश्य का संयोग ही हेय अर्थात दुख का कारण हैं।

 

दृष्टा कहते हैं शरीर में स्थित जीवात्मा को और दृश्य कहते हैं सत्त्व, रजस और तमस एवं उनसे उत्पन्न बुद्धि आदि समस्त जड़ पदार्थ। पुरुष या जीवात्मा एवं प्रकृति का जो संयोग (अज्ञानपूर्वक जो सम्बन्ध) है वही त्याज्य दुख का कारण है।

 

इस संसार में अलग अलग लोग अपने अपने दुःखों से परेशान रहते हैं और अपने अपने स्तर पर वे उन दुःखों को दूर करने का प्रयास करते रहते हैं। उन प्रयासों से उन्हें कभी तात्कालिक रूप से आंशिक सफलता मिलती भी है और कभी नहीं भी मिलती है।

 

लेकिन यदि मुख्य रूप से दुःखों के कारणों पर दृष्टि डाली जाए तो पुरुष और प्रकृति का अज्ञानपूर्ण संयोग या मिला जुला स्वरूप ही मुख्य कारण दिखता है।

 

अब एक बात समझने की यह है कि सभी सुख दुःख का आभार यह स्थूल शरीर है। वर्गीकरण की दृष्टि से शरीर को तीन भागों में बांटा गया है।

 

स्थूल शरीर

सूक्ष्म शरीर

कारण शरीर

 

रक्त, मांस, हाथ पांव युक्त जो यह पुतला है उसे स्थूल शरीर कहा जाता है।

 

बुद्धि, अहंकार, 10 इन्द्रियाँ, मन, एवं पांच तन्मात्राओं को सूक्ष्म शरीर कहते हैं, जिसके माध्यम से मृत्यु पश्चात आत्मा नए शरीर में प्रवेश करता है।

 

जब आत्म तत्त्व सूक्ष्म शरीर के साथ संयुक्त होता है तब पूर्व जन्मों के संस्कारों के कारण ही गर्भ प्राप्त करता है है पुनः स्थूल शरीर में प्रवेश कर जाता है।

 

शरीर ही सब सुख दुःखों का आधार है और शरीर प्राप्त करने का कारण आत्मा और सूक्ष्म शरीर का संयोग है। अतः जब दुःखों को पूर्ण रूप से हटाने की बात आएगी तो शरीर से मुक्त होकर सूक्ष्म शरीर के साथ संयोग को भी हटाना पड़ेगा।

 

इस प्रकार गहराई से विचार करने पर हम पाते हैं कि जो सूक्ष्म शरीर या प्रकृति के साथ आत्मा का अज्ञान जनित संयोग हो गया है, जब तक इसका उच्छेद नहीं होगा तब तक पूर्ण रूप से दुःखों से मुक्त नहीं हुआ जा सकता है।

 

जन्म जन्मान्तरों से हम इस देह भाव को हज़ारों लाखों बार प्राप्त कर चुके हैं और हर जन्म में हमने इससे छूटने की कोशिश भी की होगी। लेकिन फिर वासनाओं के वश में आकर सांसारिक जीवन में व्यस्त हो गए होंगे और सोचा होगा कि अभी मुक्ति की क्या आवश्यकता है। अभी तो और मनुष्य जीवन जीकर समाज में परोपकार करेंगे। इस प्रकार बार बार बचते रहे होंगे, लेकिन ईश्वर भी जानता है कि मनुष्य यदि एक बार देह भाव को प्राप्त हो गया तो वापस लौटते लौटते कई जन्म लग जाएंगे। इसलिए जब इसकी सारी वासनाएं खत्म हो जाएंगी तब यह योग का सहारा लेकर आगे बढ़ेगा और फिर यदि योग्य होगा तो मुक्ति को पाकर शाश्वत आंनद में स्थित हो जाएगा अन्यथा पुनः पुनः योग मार्ग की शरण में आता रहेगा।

 

यह सारी व्यवस्था ऐसे ही शाश्वत रूप से चलती आ रही है। इसलिए यदि आप में साधना के प्रति गहरी इच्छा जागृत हो रही है तो योग मार्ग पर अविलंब आगे बढ़ जाएं और फिर यह तय करें कि अब तो सब दोषों से मुक्त होकर शाश्वत शांति, मुक्ति या कैवल्य को प्राप्त करना है।

 

coming soon..
coming soon..
coming soon..
coming soon..

सूत्र: द्रष्टृदृश्ययोः संयोगो हेयहेतुः

 

दुख के मूल में कारण क्या हैं?

सब दुखों के निवारण क्या हैं?

दृष्टा शब्द से आत्मा को जानो

दृश्य शब्द से बुद्धि तुम मानो

संयोग आत्मा और बुद्धि का

कारण है सब अशुद्धि का

यह अशुद्धि को ही हेय कहा है

मुक्ति तक सबने सहा है

सारे बंधन इसी संयोग ने बांधे

जिस योगी ने सब संयम साधे

वह वियोग संयोग का कर देता है

स्वयं को समाधान से भर देता है

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