Chapter 2 : Sadhana Pada
|| 2.54 ||

स्वविषयासंप्रयोगे चित्तस्वरूपानुकार इवेन्द्रियाणां प्रत्याहारः 


पदच्छेद: स्वविषय-असम्प्रयोगे, चित्तस्य-स्वरूपानुकार-इव-इन्द्रियाणाम् .प्रत्याहार:॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • स्वविषय - अपने- अपने विषयों अर्थात कार्यों के साथ
  • असम्प्रयोगे - संपर्क सम्बन्ध न होने से
  • चित्तस्य- स्वरूपानुकार - चित्त के वास्तविक स्वरूप के
  • इव- समान या अनुसार
  • इन्द्रियाणाम् - इन्द्रियों का होना
  • प्रत्याहार:- प्रत्याहार कहलाता है ।

English

  • sva - own
  • vishaya - object of perception
  • asamprayoge - uncoupling
  • chittasya - consciousness
  • sva - own
  • rupa - form
  • anukarah - imitation
  • iva - like
  • indriyanam - senses
  • pratyaharah - withdrawal of the senses.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: जब सभी इन्द्रियों का अपने –अपने कार्यों के साथ सम्बन्ध न होने से वे इन्द्रियां चित्त के वास्तविक स्वरूप के जैसे हो जाती हैं । इन्तोद्रियों की ऐसी स्थिति को प्रत्याहार कहते हैं ।

Sanskrit:

English: The drawing in of the organs is by their giving up their own objects and taking the form of the mind-stuff. The is pratyahara.

French:

German: Pratyāhāra, die Orientierung der Sinne nach innen, besteht, wenn sich die Sinne nicht in der gewohnten Weise mit äußeren Objekten verbinden und deren Form präsentieren, sondern sich der Form annähern, die der Aufgabe von Citta ( dem meinenden Selbst) entspricht.

Audio

Yog Sutra 2.54
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Explanation/Sutr Vyakhya

  • Hindi
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  • German
  • Yog Kavya

महर्षि अब प्रत्याहार के विषय में अपने शिष्यों को समझाते हैं । प्राणायाम करने के बाद जब मन एवं इन्द्रियों पर योगी का नियन्त्रण आने लगता है तब धारणा और ध्यान को सिद्ध करने के लिए इन्द्रियों के विषयों पर नियन्त्रण करने की आवश्यकता रहती है ।

स्वभाव से ही इन्द्रियां बहिर्मुखी होती हैं, वे अपने अपने विषय की ओर गति करती हैं और यही बहिर्मुखता योग में बाधक तत्त्व है, धारणा और ध्यान के घटने में इन्द्रियों का अंतर्मुखी होना नितांत आवश्यक है ।

इन्द्रियों का अपने अपने नियत विषयों या कार्यो के साथ सम्बंधित न होकर चित के स्वरुप के अनुसार अनुसरण करना ही प्रत्याहार कहलाता है  अर्थात इन्द्रियों का आहार है उनके अपने अपने विषय और उस आहार का त्याग कर देना है प्रत्याहार ।

 

प्रत्याहार अर्थात जब इन्द्रियां अपने विषय की ओर गति न करके अपने चित्त के वास्तविक स्वरुप में स्थित हो जाती हैं तब योगी को धारणा करने की शक्ति प्राप्त होती है और वह उस ठहरे हुए चित्त को किसी स्थान विशेष में लगाये रखने का प्रयास कर पाता है ।

 

अतः प्रत्याहार प्राणायाम के बाद प्राप्त नियंत्रण की शक्ति का प्रायोगिक उपयोग है जो आगे धारणा और ध्यान लगाने में सहायक होता है

coming soon..
coming soon..
coming soon..
coming soon..

सूत्र: स्वविषयासंप्रयोगे चित्तस्वरूपानुकार इवेन्द्रियाणां प्रत्याहारः

 

अपने अपने विषयों में बहना

इंद्रियों का इसे स्वभाव समझना

बहिर्मुखी होना गति है इनकी

भोग दिलाऊं प्रथम मति है इनकी

ध्यान धारणा में यह सब बाधक है

विघ्न बाधा है, अनावश्यक है

इसलिए अंतर्मुखी इंद्रियों का होना

आवश्यक है इनके आहार का खोना

जब विषयों से इनका संपर्क न होगा

तब जीव ने कोई भोग न भोगा

इंद्रियों को जिसने निराहार सहा है

योगांग में इसे प्रत्याहार कहा है

तब इंद्रियां चित्त स्वरूप हो जाती

जैसा चित्त, वैसी ही अनुरूप हो जाती

One thought on “2.54”

  1. Sumit Kumar Chincholikar says:

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