जिन भी कर्माशयों के मूल में अविद्यादि पञ्च क्लेश हैं, वे व्यक्ति को उसके वर्तमान एवं भावी जीवन में भोग रूपी फल देने वाले होते हैं।
इसका एक अर्थ यह भी हुआ कि ऐसे कर्म जिनके मूल में अविद्या आदि पांच क्लेश नहीं हैं उनका किसी भी प्रकार से भोग रूपी फल देने वाले संस्कार बनते ही नहीं है। ऐसे कर्मों को योग की भाषा में निष्काम कर्म कह देते हैं जो केवल योगियों के ही होते हैं। सांसारिक व्यक्तियों के कर्म तो तीन प्रकार से आगे कहे जाएंगे।
इस संसार में योग के विपरीत जो कुछ कर्म किये जा रहे हैं, वे क्लेश मूलक होने से भोग या फल देने वाले हैं ही। क्लेश मूलक होने से अनेक प्रकार के बंधनों में डालने वाले या दुख देने वाले भी हैं।
काम, क्रोध, लोभ और मोह ही शुभ या अशुभ कर्मों का कर्माशय उत्पन्न होता है और इनकी तीव्रता या कम गति के कारण ही मनुष्य को इसी जन्म में अथवा आने वाले अगले जन्मों में दुःख या सुख रूप में फल की प्राप्ति होती है।
जिन कर्मो का वेग अत्यंत तीव्र होता है उनका फल तो शीघ्र मिलता है या इसी जन्म में मिल जाता। लेकिन यदि किसी जीव ने अत्यंत नीच कर्म कर दिए तो उन कर्मों का फल हो सकता है इस जन्म में न मिलकर आगे आने वाले जन्मों या योनियों में मिले। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि कोई भी क्लेश मूलक कर्म तीन प्रकार से भोग देने के लिए प्रवृत्त होता है।
जाति
आयु
भोग
यदि मनुष्य ने किसी ने इतना नीच कर्म कर दिया कि उसका फल मनुष्य योनि में सम्भव ही नहीं है अर्थात मनुष्य योनि से अलग किसी पशु पक्षी की योनि में ही संभव है तो वह पाप कर्म प्रतीक्षा करेगा अन्य योनि का।
इस प्रकार अत्यंत पाप कर्म वर्तमान मनुष्य जन्म में फल न देते हुए अगले योनि प्राप्त होने तक दबे रहते हैं और जब अनुकूल जाति मिलती है तब फ्लोन्मुख होते हैं ।
संसार में भी कई बार अत्यंत नीच कर्म करने वाले अपराधी को दंड स्वरूप दो तीन जीवन भर के कारावास की सजा सुनाते हैं लेकिन वस्तुतः सजा तो उसे एक ही जीवन की दी जा सकती है लेकिन ईश्वर के साम्राज्य में दंड की व्यवस्था इस प्रकार है यदि दंड मनुष्य के रूप में देनी सम्भव न हो तो भी पाप कर्म की सजा अवश्य मिलेगी। यदि सजा कुत्ते के योनि के रूप में लिखी है, प्रतीक्षा की जाएगी और समय आने पर कुत्ते की योनि में पाप कर्माशय ले जाएंगे।
इसीलिए कहा जाता है- भगवान के घर में देर तो हो सकती है लेकिन अंधेर नहीं हो सकती । यह कर्म एवं कर्म के फलों का एक आध्यात्मिक विज्ञान है।
सूत्र: क्लेशमूलः कर्माशयो दृष्टादृष्टजन्मवेदनीयः
क्लेश होंगे तो कर्म भी होंगे
अच्छे बुरे धर्म अधर्म भी होंगे
जिन कर्मों के आधार क्लेश हैं
उन्हीं के तो परिणाम शेष हैं
परिणाम या तो अभी मिलेंगे
या भविष्य की गोद खिलेंगे
एक बात का पूर्ण निश्चय है
किया कर्म तो फल मिलना तय है
सीधी बात हम एक समझ लें
निष्काम कर्म से हम सज धज लें