Chapter 2 : Sadhana Pada
|| 2.22 ||

कृतार्थं प्रति नष्टमप्यनष्टं तदन्यसाधारणत्वात्


पदच्छेद: कृतार्थम् , प्रति , नष्टम् , अपि , अनष्टम् , तत् , अन्य , साधारणत्वात् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • कृतार्थम् प्रति - जिसका प्रयोजन अर्थात् भोग और अपवर्गरूप कार्य पूर्ण हो गया है, उस पुरुष के लिए
  • नष्टम् - नाश को प्राप्त हुई
  • अपि - भी (वह प्रकृति)
  • अनष्टम् - नष्ट नहीं होती है, (क्योंकि)
  • तत् - वह
  • अन्य - दूसरों अर्थात् जिन पुरुषों का प्रयोजन अभी सिद्ध नहीं हुआ, (उनके लिये)
  • साधारणत्वात् - साधारण है ।

English

  • kritartham - one whose purpose has been accomplished (krita-accomplished, artham-purpose)
  • prati - towards
  • nashtam - destroyed
  • api - although
  • anashtam - not destroyed
  • tat - that
  • anya - for others
  • sadharannatvat - being common.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: जिसका प्रयोजन अर्थात् भोग और अपवर्गरूप कार्य पूर्ण हो गया है, उस पुरुष के लिए नाश को प्राप्त हुई भी वह प्रकृति नष्ट नहीं होती है, क्योंकि वह दूसरों अर्थात् जिन पुरुषों का प्रयोजन अभी सिद्ध नहीं हुआ, उनके लिये साधारण है ।

Sanskrit: 

English: Though destroyed for him whose goal has been gained, yet it still exists for others, being common to them.

French: 

German: Jedes Objekt kann für jeden Sinn haben. Wenn ein Objekt seinen Zweck für jemanden erfüllt hat, verschwindet es nicht. Es bleibt weiterhin für andere bestehen.

Audio
Yog Sutra 2.22
Explanation 2.22
Requested file could not be found (error code 404). Verify the file URL specified in the shortcode.

Explanation/Sutr Vyakhya

  • Hindi
  • English
  • Sanskrit
  • French
  • German
  • Yog Kavya

जिस भी विवेकज्ञान प्राप्त योगी पुरुष के लिए प्रकृत्ति अपवर्ग अर्थात मुक्ति रूपी प्रयोजन को सिद्ध कर देती है उसके लिए प्रकृत्ति और पुरुष का वियोग हो जाता है लेकिन जो अन्य अज्ञानी, अविवेकी सामान्य लोगों एवं योग मार्ग में आगे बढ़ने वाले जो साधक हैं, उनके लिए प्रकृत्ति नष्ट नहीं होती, उनके लिए तो वह बनी रहती है ।

 

प्रकृति किसी एक व्यक्ति विशेष के लिए नहीं बनी है वह तो मानव मात्र के भोग और मुक्ति के लिए बनी है अतः जो व्यक्ति अभी मुक्त नहीं हुए हैं और वे जो योग मार्ग पर आगे बढ़ रहे हैं, उन सबके लिए प्रकृत्ति अपने स्वरुप में बनी रहेगी । उनके सम्मुख नाना प्रकार के भोग उपस्थित करती रहेगी । जिनके पूर्व जन्म के कर्माशय बचे होंगे उन्हें उनके अनुसार जाति-आयु और भोग दिलाते रहेगी ।

 

उदाहरण- यदि कक्षा १० की परीक्षा में जो छात्र उत्तीर्ण हो जाता है उसके लिए वह कक्षा का अस्तित्व समाप्त हो जाता है । लेकिन किसी एक के उत्तीर्ण होने से अन्य जो (उत्तीर्ण नहीं हुए ) उनके लिए कक्षा १० पूर्ववत बनी रहेगी । वह चाहे तो  कक्षा १० में बैठना छोड़ दे लेकिन जब भी पढाई पुनः प्रारम्भ करेगा तो कक्षा १० से ही शुरू होगी । उसके लिए सभी नियम क़ानून, व्यवस्थाएं पहले की जैसी बनी रहेंगी । लेकिन जिसने कक्षा १० उत्तीर्ण कर ली, उसके लिए उस कक्षा के नियम, व्यवस्थाएं आदि सबकुछ निरर्थक हो जाती हैं ।

 

इसी प्रकार से प्रकृति भी मुक्त पुरुष के लिए नष्ट हो जाती है लेकिन अन्यों के लिए पहले के जैसी बनी रहती है ।

 

सिद्धांत: प्रकृत्ति सबके भोग और अपवर्ग (मुक्ति) के लिए होती है, न कि किसी एक व्यक्ति विशेष के मोक्ष के लिए

एक व्यक्ति के मुक्त हो जाने से सबकी मुक्ति नहीं होती है ।

एक व्यक्ति के मोक्ष को प्राप्त कर लेने से प्रकृति अन्यों के लिए ( जो मुक्त नहीं हुए हैं या मुक्ति के लिए प्रयास कर रहे हैं ) समाप्त नहीं हो जाती है ।

स्पष्ट है कि एक व्यक्ति के मुक्त होने से सबकी मुक्ति नहीं होती है अतः जीवात्मा एक न होकर के अनेक हैं ।

coming soon..
coming soon..
coming soon..
coming soon..

सूत्र: कृतार्थं प्रति नष्टमप्यनष्टं तदन्यसाधारणत्वात्

 

भुक्ति मुक्ति ही प्रयोजन बड़े हैं

प्रकृति के ये दो आयोजन खड़े हैं

जो भी आत्मा मोक्ष को पाती

उसके लिए प्रकृति नष्ट हो जाती

लेकिन जो अभी भोग रहे हैं

मोक्ष को बचे अभी लोग रहे हैं

प्रकृति उनकी सहगामी है

मुक्ति अभी भी आगामी है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *