Chapter 2 : Sadhana Pada
|| 2.9 ||

॥ स्वरसवाही विदुषोऽपि तथारूढोऽभिनिवेशः


पदच्छेद: स्वरसवाही , विदुष: , अपि , तथा , आरूढ: , अभिनिवेशः॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • स्वरसवाही - जो परम्परागत स्वभाव से चला आ रहा है एवं,
  • विदुषु: - (जो मूढ़ों की भाँति) विवेकशील पुरुषों में
  • अपि - भी
  • तथारूढ: - विद्यमान देखा जाता है, (वह)
  • अभिनिवेशः - अभिनिवेश अर्थात् जीवन के प्रति ममता है ।

English

  • svarasavahi- flowing on its own momentum
  • vidushah - wise, learned person
  • api - even
  • tatha - the same way
  • roodhah - firmly established
  • abhiniveshah - fear of death of identity, clinging to the life.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: जो परम्परागत स्वभाव से चला आ रहा है एवं, जो मूढ़ों की भाँति विवेकशील पुरुषों में भी विद्यमान देखा जाता है, वह अभिनिवेश अर्थात् जीवन के प्रति ममता है ।

Sanskrit: 

English: Flowing through its own nature, and established even in the learned, is the clinging to life.

French: S'étendre à la vie est inhérente à sa propre nature et établie même chez les érudits.

German: Abhinivesa ( die unbegründete Angst ) kommt von selbst, ohne dass ein äußeres Objekt zum Anstoß nötig wäre, und bewegt sogar weise und erwachte Menschen.

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Yog Sutra 2.9
Explanation 2.9
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Explanation/Sutr Vyakhya

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  • Yog Kavya

प्रत्येक व्यक्ति के भीतर एक डर समान रूप से वर्तमान है वह है मृत्यु का डर। इसे अभिनिवेश क्लेश के नाम से कहा गया है। केवल सामान्य मनुष्य नहीं अपितु ऐसे विद्वान भी जो अभी केवल शास्त्रीय रीति से आत्मा, परमात्मा, प्रकृति को जानते हैं, योग के सिद्धांतों, नियमों को केवल जानते हैं लेकिन पूर्ण रूप से सजा अनुभव नहीं प्राप्त किया है और अभी जीवन मुक्ति का अभ्यास कर रहे हैं, वे भी इस अभिनिवेश क्लेश से युक्त होते हैं। यह क्लेश अत्यंत सूक्ष्म रूप से सामान्य मनुष्यों, विद्वानों के चित्त में उपस्थित रहता ही है।

 

एक प्रश्न उठता है कि इस जन्म में बिना मृत्यु के क्षण आये हुए कैसे किसी को मृत्यु का भय हो सकता है। यदि किसी को मृत्यु के क्षण आये हों लेकिन मृत्यु मुख से बच गया हो तब तो उसे मृत्यु का भय क्या होता है, यह पता चल सकता है।

 

लेकिन सभी के जीवन में न तो ऐसी घटनाएं होती है और न ही ऐसा सम्भव हो सकता है। तब किस कारण से सभी जीव मात्र के मन में मृत्यु का डर अर्थात अभिनिवेश क्लेश बैठा हुआ है। यह भी सत्य है कि प्रत्येक प्राणी के भीतर अभिनिवेश क्लेश है। इसका अर्थ है कि संस्कार रूप में यह डर बैठा हुआ है, इस जन्म से नहीं बल्कि पूर्व जन्म में जब उसकी मृत्यु हुई थी तब उसके मन में मृत्यु का जो भय उत्पन्न हुआ था वही वर्तमान जीवन में अभिनिवेश क्लेश के रूप में आंतरिक रूप से बना हुआ है। इससे पूर्व जन्म भी सिद्ध हो जाता है। आत्मा अजर और अमर है यह भी सिद्ध होता है। जन्म जन्मान्तरों से जीवन का प्रवाह चला आ रहा है इस बात की सिद्धि भी अभिनिवेश नामक क्लेश के रहने से हो जाती है।

 

यह क्लेश अत्यंत सूक्ष्म रूप में सदैव कार्यरत है। कोई कोई व्यक्ति तो इस सिंड्रोम से अत्यंत ग्रसित रहता है क्योंकि उसका यह अभिनिवेश नाम का क्लेश उदार अवस्था में आ जाता है। इसलिए जो निरंतर तप, स्वाध्याय एवं ईश्वर प्रणिधान रूपी साधना त्रय का आश्रय लेकर जीवन में आगे बढ़ते है वे मृत्यु के भय से भी मुक्त होते चले जाते हैं और जब किसी योगी को पूर्ण रूप से यथार्त या तत्त्वज्ञान का अनुभव जो जाता है वह न तो स्वयं की मृत्यु के भय से ग्रसित होता है अपितु किसी भी प्राणी के मृत्यु पर व्यथित नहीं होता है।

coming soon..
coming soon..
coming soon..
coming soon..

सूत्र: स्वरसवाही विदुषोऽपि तथारूढोऽभिनिवेशः

 

भय मृत्यु का बड़ा विकट है

ऐसा लगता बड़ा सन्निकट है

मूढ़ व्यक्ति क्या विद्वान भी इससे

डरते हैं निज जीवन में जिससे

इसी भय को अभिनिवेश कहा है

विद्वान भी जिससे भयभीत रहा है

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