Chapter 2 : Sadhana Pada
|| 2.24 ||

तस्य हेतुरविद्या


पदच्छेद: तस्य , हेतुः , अविद्या ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • तस्य - उस (संयोग का)
  • हेतु: - कारण
  • अविद्या - अविद्या है ।

English

  • tasya - of that
  • hetuh - the cause
  • avidya - ignorance.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: उस संयोग का कारण अविद्या है ।

Sanskrit: 

English: Ignorance is the cause of this union.

French:

German: Avidyā ( die Verwechslung ) ist die Triebkraft hinter Samyoga ( der Anbindung des sehenden Selbst an das Objekt ).

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Yog Sutra 2.24
Explanation 2.24
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Explanation/Sutr Vyakhya

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  • Yog Kavya

प्रकृति और पुरुष का जो संयोग है, उसका कारण है अविद्या । बहुत ही साफ़ शब्दों में महर्षि ने संयोग का होने में जो कारण तत्त्व है उसे स्पष्ट कर दिया । योग दर्शन की यह ख़ूबसूरती है कि, यहाँ कार्य एवं उसके कारण तत्त्वों की सीधी चर्चा की गई है । इस कारण से विषय को समझना और उस पर कार्य करना अत्यन्त सुगम हो जाता है ।

 

जब भी योग सूत्रों में अविद्या शब्द का प्रयोग होगा तो इसका सीधा अर्थ होगा-मिथ्याज्ञान या जो पञ्च क्लेशों की उत्पत्ति में मूल कारण है अविद्या । व्यास भाष्य के अनुसार अविद्या को “ मिथ्याज्ञान की वासना” कहा गया है । जब तक बुद्धि में उल्टे-पुल्टे ज्ञान का प्रवाह रहता है तब तक विवेक ज्ञान नहीं होता है अतः पुरुष और प्रकृति के बीच संयोग बना रहता है ।

अविद्या के कारण ही पुरुष और प्रकृति का मिलन होता है और फिर एक संसार शुरू हो जाता है । बुद्धि, मन, चित्त एवं अहंकार का पूरा एक व्यापार या चक्र शुरू हो जाता है । पुरुष के लिए भोग एवं अपवर्ग की सभी संभावनाएं भी शुरू हो जाती हैं ।

 

अविद्या का स्वरुप क्या है वह हैं इसी पाद के चौथे एवं पांचवे सूत्र में बता चुके हैं । यह अज्ञान, यथार्त ज्ञान हुए बिना नष्ट नहीं होता है । यथार्त ज्ञान हुए बिना बुद्धि में विवेक ख्याति  उत्पन्न नहीं होती है और विवेकख्याति ही वह साधन विशेष है जिससे मिथ्याज्ञान की समाप्ति होती है और योगी पुरुष और प्रकृति के अलग अलग स्वरुप को देख पाता है ।

 

सिद्धांत:

 

पुरुष और प्रकृति के बीच संयोग का कारण अज्ञान या अविद्या है ।

अज्ञान या अविद्या की समाप्ति यथार्त ज्ञान हुए बिना नहीं हो सकती है ।

अविद्या के कारण ही पुरुष चित्त में उठने वाली वृत्तियों से तदाकार होकर स्वयं को भी वृत्ति जैसा अनुभव करता है ।

coming soon..
coming soon..
coming soon..
coming soon..

सूत्र: तस्य हेतुरविद्या

 

इस संयोग का कारण क्या है?

और कारण का निस्तारण क्या है?

अविद्या ही इस सबके मूल में है

मानव इसी भूल में है

कि कुछ भी विशेष कर्तव्य नहीं

अभ्युदय निःश्रेयस कुछ भी मंतव्य नहीं

जब अविद्या नाश हो जायेगा

योगी स्व विकास को पाएगा

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