Chapter 2 : Sadhana Pada
|| 2.31 ||

जातिदेशकालसमयानवच्छिन्नाः सार्वभौमा महाव्रतम्


पदच्छेद: जाति , देश , काल , समय , अनवच्छिन्नाः , सार्वभौमा: , महाव्रतम् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • जाति - (उक्त यम) जाति
  • देश - देश
  • काल - काल (और)
  • समय - विशेष नियम (की)
  • अनवच्छिन्नाः - सीमा से रहित (और)
  • सार्वभौमा: - सब अवस्थाओं में पालन करने योग्य
  • महाव्रतम् - महाव्रत कहलाते हैं ।

English

  • jati - class
  • desha - place
  • kala - time
  • samaya - circumstance
  • anavachchhinnah - universal
  • sarva-bhauma - universal
  • maha-vratam - great vow.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: उक्त यम जाति, देश, काल और विशेष नियम की सीमा से रहित और सब अवस्थाओं में पालन करने योग्य महाव्रत कहलाते हैं ।

Sanskrit: 

English: Those (the five vows) are not limited by class, place, time and circumstance are extending to all stages constitute the Great Vow.

French: 

German: Meisterschaft darin entsteht, wenn wir uns unbeeinflusst von Herkunft, dem Ort, dem Zeitpunkt oder der Situation, in der wir sind, an diese Regeln halten.

Audio

Yog Sutra 2.31
Explanation 2.31
Requested file could not be found (error code 404). Verify the file URL specified in the shortcode.

Explanation/Sutr Vyakhya

  • Hindi
  • English
  • Sanskrit
  • French
  • German
  • Yog Kavya

इन पांच यमों को महाव्रत भी कहा जाता है । ये सभी महाव्रत जाति, देश एवं काल एवं समय आदि अन्तरायों (अर्थात बाधाओं) से परे प्रत्येक परिस्थिति में अनुष्ठान करने हैं । कैसी भी स्थिति या परिस्थिति हो साधक को इन पांच यमों को नहीं छोड़ना चाहिए । अन्य सभी अनुष्ठान तो व्रत हैं लेकिन ये अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह तो महाव्रत हैं अर्थात कभी भी छोड़ने योग्य नहीं है ।

 

१.जाति से पार-  योग दर्शन में जब जब जाति शब्द का प्रयोग होगा तो उसे किसी जीव या प्राणी से जोड़कर समझना है । मनुष्य, पशु, पक्षी या अन्य किसी भी कीट पतंगों से परे अहिंसा का पालन करना चाहिए | ऐसा नहीं समझना चाहिए कि मैं तो मनुष्य मात्र के लिए तो अहिंसक हूँ लेकिन पशुओं की हिंसा करता हूँ । मन, वचन और कर्म से प्रत्येक प्राणी समुदाय की हिंसा न करना ही अहिंसा है । अहिंसा हमारा स्वभाव होना चाहिए न कि चयन | जाति विशेष पर अहिंसा का भाव रखना और किसी अन्य जाति पर हिंसा का भाव रखना, यह दोनों उचित नहीं है और अहिंसा के अंतर्गत नहीं आता है । सभी प्राणियों पर जाति से परे भाव रखकर समान रूप से अहिंसा रखनी चाहिए ।

 

२.देश से पार- योग दर्शन में जब जब देश शब्द का प्रयोग होता तो उसे किसी स्थान विशेष के अर्थ में स्वीकार करें । जैसे अहिंसा  जाति से परे होती है, उसी प्रकार सब देशों अर्थात स्थान पर अहिंसा का भाव रखना चाहिए | किसी स्थान को पवित्र मानकर अन्य स्थान पर हिंसा करना यह भी उचित नहीं है, बंधन में डालने वाला है । जैसे कोई तीर्थ स्थानों पर जाकर हिंसा न करे लेकिन उनसे भिन्न स्थानों पर हिंसा को उचित ठहराए तो इस प्रकार का व्यवहार अहिंसा में नहीं आयेगा । हर हाल में प्रत्येक स्थान पर अहिंसा का अनुष्ठान करना ही अहिंसा कहलाता है । इसी प्रकार से एनी यम के अंगो के विषय में भी समझ लेना चाहिए ।

 

३.काल से परे- इस सूत्र में काल शब्द से कोई समय या तिथि विशेष या उत्सव विशेष लेना है । कोई कहे कि मैं तो किसी तिथि, पर्व या उत्सव विशेष के दिन ही अपनी इष्टकामना की पूर्ति हेतु हिंसा करूँगा अन्य दिन पूर्ण रूप से अहिंसा का पालन करूँगा तो इसे भी हिंसा ही कहा जायेगा क्योंकि अहिंसा तो वह होती है जो प्रत्येक काल में अनुष्ठान के योग्य होती है । अहिंसा के पालन में काल किसी भी प्रकार से बाधा नहीं बनता है, अतः काल को आधार बनाकर अपने मन से हिंसा और अहिंसा का निर्धारण नहीं करना चाहिए ।

 

४.समय से परे- यहाँ सूत्र में समय का अर्थ नियम विशेष है। कोई देवों या ब्राह्मणों को आधार बनाकर यह नियम बांध ले कि वह केवल इस समय पर ही हिंसा करेगा अन्य समय नहीं तो यह भी हिंसा का ही रूप हो जायेगा । महर्षि ने इससे भी पार अहिंसा को रखा है । कोई यह भी कहे कि किसी अन्याय के प्रतिरोध में या ब्राह्मणों की हत्या के बदले में ही हिंसा करूँगा तो इसकी भी हिंसा में ही गणना होगी । इतना संभव है कि उसे पाप न लगे लेकिन पूर्ण रूप से अहिंसा के पालन में यह बाधा ही है ।

एक अहिंसा को जाति, देश, काल और समय की सीमा से पार समझाया गया है, ठीक इसी प्रकार शेष यमों सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह को भी इन्हीं सब उदाहरणों एवं प्रसंगों से समझ सकते हैं

coming soon..
coming soon..
coming soon..
coming soon..

सूत्र: जातिदेशकालसमयानवच्छिन्नाः सार्वभौमा महाव्रतम्

 

सार्वभौमिक-व्रत और अनुष्ठान हैं ये

योगमय जीवन के प्रारंभिक समाधान हैं ये

जाति-स्थान और काल परे

यमों का पालन जो हर हाल करे

यही आदर्श है-यही आदेश है

इसी बात का यहां समावेश है

मन से, कर्म से और वाणी से

हर जीव मात्र से, हर प्राणी से

जो निर्वैर रहे- हिंसा न सहे

शास्त्र उसी को योगी कहे

जीव मात्र से यह भाव जुड़े

प्रत्येक स्थान में अहिंसा का स्वभाव जुड़े

हर काल में यह प्रभाव जुड़े

One thought on “2.31”

  1. अद्वितीय says:

    अहिंसा परमो धर्मः 🙏

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *