Chapter 2 : Sadhana Pada
|| 2.16 ||

हेयं दुःखमनागतम्


पदच्छेद: हेयम् , दुःखम् , अनागतम् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • अनागतम् - जो आया नहीं है आनेवाला है वह
  • दु:खम् - दुख
  • हेयम् - त्यागने योग्य (है) ।

English

  • heyan - avoidable
  • duhkham - misery, pain
  • anagatam - which is not yet come

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: जो आया नहीं है आनेवाला है वह दु:ख त्यागने योग्य है ।

Sanskrit: 

English: The misery which is not yet come is avoidable.

French: La misère qui n'est pas encore venue est évitable.

German: Das Leid, das noch vor uns liegt, ist vermeidbar.

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Yog Sutra 2.16
Explanation 2.16
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Explanation/Sutr Vyakhya

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  • Yog Kavya

सुख में भी दुःख दर्शन का दोष दिखाकर महर्षि अब बताते हैं कि दुख को दुख मानकर उससे कैसे बचा जाए।

 

 

प्रारब्ध वश जो दुख रूप में भोग मिले चुके है उन्हें तो किसी भी प्रकार हटाया नहीं जा सकता है और जो वर्तमान में कोई दुख भोगा जा रहा है उसे भी हटाया नहीं जा सकता है, क्योंकि कर्म फ्लोन्मुख हो गया है।

 

अब बचे ऐसे दुख, जो भविष्य में फल देने वाले बनेंगे तो ऐसे दुःख हटाये जाने योग्य हैं। ऐसे दुःखों को हटाए जाने के लिए प्रयास किया जा सकता है। पूर्व में भी जैसे हमने बताया कि मनुष्य कर्म करने के चयन में और उन्हें करने में स्वतंत्र है तो इसी प्रकार जो दुःख अभी आये नहीं हैं, केवल उनको हटाने का प्रयास किया जा सकता है।

 

जैसे वर्तमान में आप कोई दुख (चाहे शरीर का हो या मन का हो) भोग रहे हैं। यह दुःख दो दिन से भोग रहे हैं तब दो दिन तक जो दुःख आपको हुआ है इसे आप नहीं हटा सकते हैं क्योंकि वह तो भोगा जा चुका है अब कोई मार्ग नहीं है कि आप पीछे जाकर उसका निवारण कर सको।

 

अब वर्तमान में जो दुःख आपको महसूस हो रहा है उसे भी आप नहीं हटा सकते क्योंकि यह एक एक क्षण में आपको महसूस हो रहा होगा । यदि आप इसे हटाने का प्रयत्न करेंगे तो पल-पल में वर्तमान भूतकाल बनता जा रहा है अतः वर्तमान दुःख को भी आप नहीं हटा सकते हैं।

 

अब आप  दुःख से छूटने के लिए जो कुछ प्रयास करेंगे वह भविष्य में आने वाले दुःख का ही निवारण करेगा। अतः केवल भविष्य में आने वाले दुख ही त्याज्य हैं।

 

इसलिए महर्षि ने सूत्र कहा कि आने वाला दुःख ही हटाने योग्य है, वर्तमान या भूतकाल का दुःख नहीं।

 

एक और उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं- अनेक वर्षाकाल में पहाड़ों से अनेक पानी की धाराएँ मिलकर एक नदी का विकराल रूप बनाकर किनारे के गांवों में भीषण हाहाकार मचाती हैं। इस प्रकार बहुत जान-माल का नुकसान होता है। जब नदी में बाढ़ आती है और उससे जो नुकसान होता है उसे आप नहीं रोक सकते हैं। लेकिन यदि सब मिलकर वहां एक बांध का निर्माण कर अतिशय जलराशि को रोक दें और वहां से पानी की गति नियंत्रित कर दें तो भीषण हानि से बचा जा सकता है। इस प्रकार भावी दुःख या घटनाओं से बचा जा सकता है। इसी प्रकार जीवन में भी आगे दुःख न आएं इसके लिए पूर्व तैयारी की जा सकती है। यदि आप प्रबल रूप से पुण्य कर्म करेंगे तो जो पाप रूपी कर्म दुख देने के लिए आएंगे तो उन्हें फल देने से रोका जा सकता है।

तीव्र अच्छे कर्मों का प्रवाह दुख के मार्ग में आ सकता है।

coming soon..
coming soon..
coming soon..
coming soon..

सूत्र: हेयं दुःखमनागतम्

 

कुछ दुख ऐसे होते हैं

जो फलोन्मुख हो चुके होते हैं

उनका निवारण असंभव हैं

केवल भाव रूप से संभव है

दुख ऐसे जो हमने भोग लिए

कुछ भी, कैसा सहयोग लिए

उसको भी हटाना कहां संभव है?

यह तो सर्वथा असंभव है

फिर कौन से दुखों से बच सकते हैं?

व्यूह कौन से निवारणों का रच सकते हैं?

जो अनागत हैं, अभी आए नहीं

दुख ऐसे हो कर्म बन पाए नहीं

पर भविष्य में फलोन्मुख होंगे

त्याज्य इस प्रकार के दुख होंगे

One thought on “2.16”

  1. अनिल says:

    बहुत अच्छा !!

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