इस सूत्र के माध्यम से महर्षि अष्टांग योग की परिभाषा कर रहे हैं । मैं इसे योग सूत्रों की आत्मा कहता हूँ । यह सूत्र समस्त सूत्रों का केंद्र है । अष्टांग योग में जितने भी सूत्र आते हैं वे सभी योग दर्शन के नाभिकीय सूत्र हैं । यही वे सूत्र हैं जो साधना पथ का निर्धारण एवं समस्त ऐश्वर्य, विभूतियों को देने वाले हैं ।
आध्यात्मिक जगत के जितने भी ऐश्वर्य हो सकते हैं वे सब इसी अष्टांग योग के अनुष्टान से प्राप्त होते हैं ।
योग के आठ अंग हैं-
यम
नियम
आसन
प्राणायाम
प्रत्याहार
धारणा
ध्यान
समाधि
इस प्रकार यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि ये योग के आठ अंग हैं ।
इस सूत्र में एक महत्त्वपूर्ण शब्द आया है-वह है अनुष्टान । अनुष्ठान शब्द का अर्थ होता है विशेष व्रताभ्यास । जिसे मन, वचन और कर्म की एकरूपता से सम्पन्न किया जाता है उसे अनुष्ठान कहते हैं । इसलिए सूत्र का अर्थ हुआ कि मन,वचन और कर्म से यम-नियमों आदि आठ अंगों के अनुष्ठान से सब प्रकार की मलिनता का नाश होकर विवेक ख्याति होने तक निरंतर ज्ञान का प्रकाश बढ़ता जाता है ।
अतः साधक को चाहिए कि क्रिया योग पूर्वक योग के इन आठ अंगो का व्रताभ्यास या अनुष्ठान करना चाहिए जिससे वह प्रकृति और पुरुष के बीच के संयोग को नष्ट कर अपने स्वरुप में स्थिति को प्राप्त कर सके । अपने सभी दुखों का अन्त कर शाश्वत प्रभु के आनंद में स्थित हो करे ।
आगे एक एक अंग को ठीक प्रकार से समझने का प्रयास करते चले जायेंगे ।
सूत्र: यमनियमासनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानसमाधयोऽष्टावङ्गानि
प्रथम तीन यम-नियम और आसन हैं
प्राणायाम-प्रत्याहार-धारणा सब साधन हैं
ध्यान-समाधि ये आठ अंग हैं
जिस साधक के ये अंग संग हैं
मानव से महामानव बन जाता है
सर्वोच्च लक्ष्य को पाता है
जीवन पथ पर सदा गतिमान वह
ऐश्वर्य युक्त और विभूतिवान वह
भूले बिसरे स्वरूप को पा जाता है
शरणागति के परम भाव में समा जाता है
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