यह पूर्व के तीन प्रकार के प्राणायाम से एकदम भिन्न कार्य वाला प्राणायाम है ।
हमने पूर्व में बाह्य वृत्ति और आभ्यंतर वृत्ति प्राणायाम को समझा है अतः यह चतुर्थ प्राणायाम इन दोनों प्राणायामों के विपरीत कार्य करता है ।
जब हम बाह्य वृत्ति प्राणायाम में बाहर गई श्वास को बाहर ही रोकते हैं और कुछ समय बाद हमें शास भीतर लेने की आवश्यकता अनुभव होने लगती है । यदि इस स्थिति में हमने श्वास भीतर भर लिया तो यह बाह्य वृत्ति प्राणायाम हो जायेगा लेकिन यदि हमने श्वास भीतर न लेकर पुनः श्वास को बाहर की ओर धक्का देकर फिर से रोक लिया तो यही चतुर्थ प्राणायाम हो जायेगा । इस प्रकार एक बार ऐसा करने के बाद जब हमें तीव्र इच्छा होने लग जाएगी कि अब श्वास ले लें तब पुनः यदि प्रयत्न पूर्वक हमने एक और धक्का देकर श्वास को बाहर ही रोक लें तो यह चतुर्थ प्राणायाम का एक और अभ्यास हो जायेगा ।
इस प्रकार जब श्वास भरकर हम भीतर रोकते हैं तब सामर्थ्य अनुसार रोकने के बाद इच्छा होगी कि श्वास को बाहर छोड़ दें लेकिन तभी श्वास को और भीतर खींच कर रोक लेंगे तो यह चतुर्थ प्राणायाम हो जायेगा । अब जितनी बार भी प्रयत्नपूर्वक हम ऐसा करेंगे उतनी बार चतुर्थ प्राणायाम हो जायेगा ।
अतः बाह्य वृत्ति और आभ्यंतर वृत्ति के करने के बाद जब श्वास भीतर और बाहर छोड़ने की इच्छा के विपरीत प्रयत्न करते हैं तो यही चतुर्थ प्राणायाम कहलाता है ।
प्राणायाम के विषय में कुछ सावधानियाँ –
१.जो साधक हैं वे प्राणायाम का अभ्यास आसन की सिद्धि होने पर ही करें ।
२.साधना नहीं अपितु स्वास्थ्य की दृष्टि से प्राणायाम करने वाले साधक आसन और प्राणायाम को साथ साथ में साधते रहें
३.प्राणायाम को सदैव खाली पेट ही करें जिससे प्राणवायु का संचार ठीक प्रकार से हो पाए और शरीर किसी अन्य गतिविधि में न लगा रहे ।
४.प्राणायम का अभ्यास प्रारंभ में अत्यंत वेग पूर्वक नहीं करना चाहिए ।
५.प्रारंभ में प्राणायम का अभ्यास धीरे धीरे एवं छोटे छोटे अभ्यास के साथ करना चाहिए ।
जिन प्राणायामों की बात यहाँ योगदर्शन में की जा रही हैं इनका अभ्यास रोग होने की स्थिति में नहीं करनी चाहिए, हाँ अनुलोम विलोम, कपालभांति आदि जो अन्य प्राणायाम के भेद हैं उन्हें धीरे धीरे किया जा सकता है, उनसे अवश्य लाभ होगा ।
सूत्र: बाह्याभ्यन्तरविषयाक्षेपी चतुर्थः
चौथा प्राणायाम बड़ा गहरा है
यह बाह्य आभ्यंतर पर पहरा है
बाह्य आभ्यंतर जब अंतिम क्षण में होते
तब योगी जो रोकने का संकल्प संजोते
वह विपरीत प्रयास – क्रिया जो करते
उसे ही हम चौथा प्राणायाम हैं कहते
इसका विशेष कुछ नाम नहीं है
लेकिन इसे किए बिन आराम नहीं है
Nice explanation of yoga sutras of Patanjali.
Dr. Mahimansinh Gohil
Thank you dr mahimansingh ji. Your feedback is important to us. Please share this peice of knowledge to your known ones