Chapter 2 : Sadhana Pada
|| 2.35 ||

अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः


पदच्छेद: अहिंसा , प्रतिष्ठायाम् , तत् , सन्निधौ , वैर , त्यागः॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • अहिंसा - अहिंसा (की)
  • प्रतिष्ठायाम् - दृढ़ स्थिति हो जाने पर
  • तत् - उस (योगी के)
  • सन्निधौ - निकट
  • वर - (सब प्राणी) वैरभाव
  • त्यागः - त्याग कर देते हैं ।

English

  • ahimsa - non-violence
  • pratishthayam - firmly established
  • tat - that
  • sannidhau - coming near
  • vairatyagah - give up hostilities.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: अहिंसा की दृढ़ स्थिति हो जाने पर उस योगी के निकट सब प्राणी वैरभाव त्याग कर देते हैं ।

Sanskrit: 

English: On being firmly established in non-violence, all beings coming near him cease to be hostile.

French: 

German: In der Nähe eines Menschen, der Meisterschaft in Ahimsā ( Gewaltlosigkeit ) erlangt hat, wird Feindseligkeit nicht gedeihen.

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Yog Sutra 2.35
Explanation 2.35
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Explanation/Sutr Vyakhya

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  • Yog Kavya

यम-नियमों की विस्तृत चर्चा करने के बाद अब उनके अनुष्ठान से क्या फल प्राप्त होते हैं, उसकी चर्चा प्रारंभ कर रहे हैं । सभी १० यम नियमों के पालन करने से योगी को क्या क्या शारीरिक, मानसिक लाभ मिलता है उसकी चर्चा यहाँ से शुरू होती है |

 

यमों में अहिंसा को सबसे पहले गिना गया है । जिस प्रकार सभी क्लेशों के मूल में अविद्या है उसी प्रकार सभी यमों के मूल में अहिंसा है । जब साधक निरंतर अहिंसा का मन, वचन और कर्म से पालन करता है और वह उसके जीवन में प्रतिष्ठित हो जाती है तो सब प्राणियों के प्रति उसकी हिंसा ख़त्म हो जाती है और सभी अन्य प्राणियों की उसके प्रति वैरभाव, हिंसा भी ख़त्म हो जाती है |  केवल ऐसा नहीं है कि साधक की ओर से ही हिंसा या वैरभाव का अभाव हो जायेगा अपितु अन्य सभी प्राणी भी योगी के प्रति वैरभाव त्याग देते हैं ।

 

मन से किसी भी प्राणी के प्रति हिंसा का विचार नहीं करना मानसिक अहिंसा कहलाती है

वाणी से किसी भी प्राणी के प्रति कठोर व्यवहार न करना वाचिक अहिंसा कहलाती है

शरीर से किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं देना कायिक अहिंसा कहलाती है

 

जब योगी स्वयं अहिंसा में प्रतिष्ठित हो जाता है तो कैसे अन्य प्राणी भी उसके प्रति वैरभाव से रहित हो जाते हैं ? यह प्रश्न उठता है-

 

समाधान- आप सबने सुना होगा. जैसा व्यवहार हम दूसरों के साथ करते हैं तो दुसरे भी हमारे साथ वैसा व्यवहार करने लग जाते हैं । अप अपने जीवन में इस नियम का प्रयोग एक माह तक करके देखें और आप पायेगे कि आश्चर्यजनक रूप से परिणाम मिलते हैं । जैसे जैसे आपके मन से किसी एक व्यक्ति के प्रति सब प्रकार की मलिनता दूर होती जाती है, उस व्यक्ति के जीवन में भी आपके प्रति मैत्री का भाव निर्मित होता जाता है । उसे विशेष प्रयत्न नहीं करना पड़ता आपके साथ मित्रता निभाने के लिए । केवल आपकी साधना मात्र से ही दुसरे व्यक्ति में आपके प्रति आकर्षण उत्पन्न होने लग जाता है । इस प्रकार जब सूक्ष्मता से कोई साधक मन, वचन और कर्म से सबके प्रति निर्मल होता जाता है तो उसका प्रभाव व्यापक रूप पड़ता है ।

 

जैसे जैसे साधक अहिंसा के भाव से भरने लग जाता है वह उतना ही अन्य यमों और नियमों के पालन के लिए तत्पर रहने लग जाता है । इसलिए अहिंसा को सभी यमों के मूल में बताया गया है ।

coming soon..
coming soon..
coming soon..
coming soon..

सूत्र: अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः

 

यम के 5 अंगों का आधार धरेंगे

एक-एक भाव का विस्तार करेंगे

सब प्राणियों में दया भाव हो

अहिंसक हम सबका स्वभाव हो

जब हिंसारहित हम हो जाते हैं

प्रसाद रूप में बहुत कुछ हम पाते हैं

सब प्राणी योगी से अभय हैं पाते

योगीजन भी निर्वैर हो जाते

अहिंसा का ऐसा फल है मिलता है

निर्वैर हुआ योगी फूल सा खिलता है

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