Chapter 2 : Sadhana Pada
|| 2.34 ||

वितर्का हिंसादयः कृतकारितानुमोदिता लोभक्रोधमोहपूर्वका मृदुमध्याधिमात्रा दुःखाज्ञानानन्तफला इति प्रतिपक्षभावनम्


पदच्छेद: वितर्का: , हिंसा , आदयः , कृत , कारित , अनुमोदिता: , लोभ , क्रोध , मोह , पूर्वका: , मृदु , मध्य , अधिमात्रा: , दुःख , अज्ञान , अनन्त , फला: , इति , प्रतिपक्ष , भावनम् ॥


शब्दार्थ / Word Meaning

Hindi

  • हिंसा - (यम और नियमों के विरोधी) हिंसा
  • आदयः - आदि (भाव)
  • वितर्का: - वितर्क (कहलाते हैं; जो तीन प्रकार के होते हैं)-
  • कृत - स्वयं किए हुए
  • कारित - दूसरों से करवाये हुए (और)
  • अनुमोदिताः - अनुमोदित किए हुए ।
  • पूर्वका: - (इनके) कारण हैं -
  • लोभ - लोभ,
  • क्रोध - क्रोध (और)
  • मोह - मोह ।
  • मृदु - (इनमें भी कोई) मृदु,
  • मध्य - मध्यम (और)
  • अधिमात्रा: - बड़ा (होता है)
  • दु:ख - ये क्लेश (और)
  • अज्ञान - अज्ञान (का)
  • अनन्त - अनन्त
  • फला: - फल देनेवाले हैं ।
  • इति - ऐसा (विचार करना ही)
  • प्रतिपक्ष - प्रतिपक्ष (की)
  • भावनम् - भावना (है) ।

English

  • vitarkaa - troublesome thoughts
  • hinsadayah - harmful and the others
  • krita - committed (by oneself)
  • karita - caused to be done (by others)
  • anumoditah - approved of (when done by other)
  • lobha - greed
  • krodha - anger
  • moha - delusion
  • poorvakah - preceded by
  • mridu - mild
  • madhya - moderate
  • adhimatrah - intense
  • duhkha - misery
  • ajnana - ignorance
  • ananta - unending
  • fala - results, consequences
  • iti - thus
  • pratipaksha - to the contrary
  • bhavanam - cultivate.

सूत्रार्थ / Sutra Meaning

Hindi: यम और नियमों के विरोधी हिंसा आदि भाव वितर्क कहलाते हैं; जो तीन प्रकार के होते हैं - स्वयं किए हुए दूसरों से करवाये हुए और अनुमोदित किए हुए । इनके कारण हैं - लोभ, क्रोध और मोह । इनमें भी कोई मृदु, मध्यम और बड़ा होता है ये क्लेश और अज्ञान का अनन्त फल देनेवाले हैं । ऐसा विचार करना ही प्रतिपक्ष की भावना है ।

Sanskrit: 

English: The obstacles to yoga - such as acts of violence and untruth - may be directly created or indirectly caused or approved; either through avarice, or anger, or ignorance; whether mild, moderate, or intense, and result is innumerable ignorances and miseries. This is (the method of) thinking the contrary.

French: 

German: Sich intensiv auf das Gegenteil einstellen bedeutet, dass wir unsere bevorstehende Tat hinterfragen: Zieht sie mich in Richtung Verletzen, Lügen, Verunreinigung, Unzufriedenheit usw. ? Wenn ich nicht direkt Täter bin, bin ich vielleicht der Veranlasser der Tat oder freudiger Zuschauer? Hat die Tat Gier, Wut oder Unklarheit als Motivation? Ist sie mild, mäßig oder intensiv? Wird sie endlose Folgen ( Leid, Verwirrung, Angst usw. ) mit sich bringen?

Audio
Yog Sutra 2.34
Explanation 2.34
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Explanation/Sutr Vyakhya

  • Hindi
  • English
  • Sanskrit
  • French
  • German
  • Yog Kavya

प्रस्तुत सूत्र में हिंसा आदि वितर्कों (बाधाओं) को विस्तार से समझाया गया है और साथ में ही उनके कारणों के ऊपर भी महर्षि ने प्रकाश डाला है । यम नियमों के जितने भी विपरीत या उल्टे भावनाएं या विचार हैं वे सभी वितर्क कहलाते हैं । ये विभाग की दृष्टि से तीन प्रकार के होते हैं-

1.कृत :-ऐसे वितर्क या यम नियमों से विपरीत भाव जो स्वयं करते हैं, वे कृत कहलाते हैं- जैसे- स्वयं किसी प्राणी के साथ हिंसा करना या कष्ट पहुँचाना, स्वयं असत्य बोलना, स्वयं अपने मन से चोरी के विषय में सोचन और फिर चोरी करना, स्वयं कामुक विचारों को आश्रय देकर अब्रह्मचर्य में बरतना, आवश्यकता से अधिक पदार्थों का संचय करना , शरीर एवं मन की अशुद्धि रखना , असन्तोष में जीना,  सुख-दुःख, मान-अपमान, जय-पराजय आदि द्वंदों से विचलित होना , मुक्तिदायक ग्रंथों एवं गुरु वचनों का चिंतन, मनन न करना एवं नास्तिकता का भाव अर्थात ईश्वर में विश्वास न रखना । स्वयं किये जाने से ये सभी कृत वितर्क कि श्रेणी में आते हैं ।

 

2.कारित :-ऐसे कार्य जो स्वयं न करके दूसरों के माध्यम से करवाए जाते हैं कारित वितर्क कहलाते हैं । कोई यह समझे कि हमने स्वयं से तो कम नहीं किये तो इसका फल हमें नहीं मिलेगा तो यह ठीक नहीं है क्योंकि केवल कृत कर्म ही नहीं अपितु कारित और अनुमोदित कर्म भी करवाने और समर्थन करने से फल देने वाले होते हैं । जैसे- दूसरों को हिंसा के लिए तैयार करना, झूठ बोलने  के लिए उकसाना  से लेकर सभी यमों और नियमों के विपरीत जो कार्य करवाता है वे सभी कारित कहलाते हैं और पाप रूपी फल देने वाले होते हैं । कारित वितर्क से भी स्वयं का चित्त उन बाधाओं से बंध जाता है क्योंकि उनके विषय में प्रवृत्ति बनी रहती है जिसके कारण से वे अपना प्रभाव नहीं छोड़ते और साधक को योग मार्ग से विचलित करते ही हैं ।

 

3.अनुमोदित :- जब स्वयं कोई कर्म नहीं करते, और दूसरों को प्रेरित करके भी कर्म नहीं करवाते हैं लेकिन यदि कोई अन्य यम-नियमों के विपरीत भावों को क्रिया रूप में कर रहा हो तो उसका समर्थन करना ही अनुमोदित कहलाता है । गलत बातों का समर्थन करना भी गलत होता है । आध्यात्मिक  जगत का सत्य तो भाव ही  हैं । यदि भाव रूप से ही आप चाहे अच्छी चीजों का बुरी चीजों से जुड़े रहते हैं तो आपको शुभ-अशुभ फल भी अवश्य मिलेगा ।  जैसे- कोई दूसरा हिंसा आदि करता है तो उसे सही ठहराना , , कोई असत्य बोलकर बोलता है और तुम उसके समर्थन में आकर उसे सही ठहराते हैं, इस प्रकार सभी यम-नियमों के विपरीत कोई अन्य कुछ भी गलत करता है या सोचता भी है तो उसका किसी भी रूप में समर्थन तुम्हें ही बाँध देता है । यह सबकुछ अनुमोदित वितर्क हैं और त्यागने योग्य हैं ।

 

कृत-कारित एवं अनुमोदित इन तीन वितर्कों के मूल में तीन कारण हैं ।

१. लोभ,

२. क्रोध व

३. मोह

 

लोभ द्वारा :- कुछ वितर्कों को करने के पीछे लोभ कारण होता है । जब उसे लोभ सम्मोहित कर देता है तब वह वशीभूत हुआ यम-नियमों के विपरीत भावों को आदर देकर सपरिवार उन्हें निमंत्रित कर लेता है और फिर बंधन में फंस जाता है । चूँकि वितर्क भी मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं तो लोभ के कारण होए वाले वितर्क भी तीन भेदों में बंट जाते हैं ।

 

लोभ द्वारा कृत:- जब स्वयं के द्वारा कोई वितर्क या बाधा में लोभ के कारण हम फंस जाते हैं और कर्म कर देते हैं तो इसे लोभ द्वारा कृत वितर्क ऐसा कहते हैं ।

लोभ द्वारा कारित:- लोभ या लालच के अधीन होकर जब व्यक्ति दूसरों को कहकर कर्म करवाए तो इसे लोभ द्वारा कारित वितर्क कहते हैं ।

लोभ के द्वारा अनुमोदित:- लोभ के कारण जब व्यक्ति दूसरों द्वारा किये गये वितर्कों के समर्थन में आ जाता है और उसके कर्मों को सही ठहराने लग जाता है तब इसे लोभ द्वारा अनुमोदित वितर्क कहते हैं ।

 

क्रोध द्वारा कृत:- जब स्वयं के द्वारा कोई वितर्क या बाधा में के कारण हम फंस जाते हैं और कर्म कर देते हैं तो इसे क्रोध द्वारा कृत वितर्क ऐसा कहते हैं ।

क्रोध द्वारा कारित:- या गुस्से के अधीन होकर जब व्यक्ति दूसरों को कहकर कर्म करवाए तो इसे द्वारा कारित वितर्क कहते हैं ।

क्रोध के द्वारा अनुमोदित:- के कारण जब व्यक्ति दूसरों द्वारा किये गये वितर्कों के समर्थन में आ जाता है और उसके कर्मों को सही ठहराने लग जाता है तब इसे द्वारा अनुमोदित वितर्क कहते हैं ।

 

मोह द्वारा कृत:- जब स्वयं के द्वारा कोई वितर्क या बाधा में मोह के कारण हम फंस जाते हैं और कर्म कर देते हैं तो इसे मोह द्वारा कृत वितर्क ऐसा कहते हैं ।

मोह द्वारा कारित:- के अधीन होकर जब व्यक्ति दूसरों को कहकर कर्म करवाए तो इसे मोह द्वारा कारित वितर्क कहते हैं ।

मोह के द्वारा अनुमोदित:- मोह के कारण जब व्यक्ति दूसरों द्वारा किये गये वितर्कों के समर्थन में आ जाता है और उसके कर्मों को सही ठहराने लग जाता है तब इसे द्वारा अनुमोदित वितर्क कहते हैं ।

प्रत्येक वितर्क के मुख्य रूप कृत, कारित एवं अनुमोदित तीन भेद कहे गए हैं । फिर प्रत्येक के तीन भेद लोभ, क्रोध और मोह कहे गए हैं ।

कृत-लोभ कृत, क्रोध कृत एवं मोह कृत

कारित- लोभ कारित, क्रोध कारित एवं मोह कारित

अनुमोदित-  लोभ अनुमोदित, क्रोध अनुमोदित एवं मोह अनुमोदित

इस प्रकार तीन वितर्कों के कुल ९ प्रकार हो गए ।

 

ये ९ भेद भी अब मात्रा के अनुसार पुनः ३ प्रकार होते हैं- मृदु, मध्य एवं अधिमात्र अर्थात तीव्र मात्र वाले ।

 

इस प्रकार  9×3 = 27 प्रकार के हुए ।

 

अब चूँकि मृदु, मध्य एवं अधिमात्र अर्थात तीव्र के भी पुनः तीन भेद कहे गये हैं ।

मृदु-मृदु, मृदु-मध्य- मृदु-तीव्र

मृदु-मध्य , मध्य-मध्य एवं तीव्र-मध्य

मृदु-तीव्र, मध्य-तीव्र एवं तीव्र-तीव्र

 

अतः २७×३=८१ इस प्रकार सूक्ष्म विवेचन से कुल इक्क्यासी भेद वाले ये वितर्क हो जाते हैं । इस प्रकार हिंसा वितर्क के ८१ भेद होते हैं । आगे यम-नियमों के भी ८१-८१ भेद समझने चाहिए । फिर यह हिंसा नियम, विकल्प एवं समुच्चय भेद से प्राणियों के प्रकार अनगिनत होने से असंख्य भेद वाली होती है । इसी प्रकार अन्य यमो और नियमों के बारे में भी समझ लेना चाहिए ।

आगे हिंसा आदि वितर्कों के तीन अन्य प्रकार भी होते हैं –

नियम :- हिंसा के विषय में कोई एक नियम बना लेना कि मैं तो केवल एक ही प्राणी या पशु के साथ हिंसा करूँगा अन्यों के साथ अहिंसा के नियम का पालन करूँगा तो इसे नियम कहते हैं । बांकी असत्य आदि यम, नियमों के बारे में भी ऐसा ही समझ लें ।

विकल्प :- जब विकल्प रूप में यह कहे कि दो पशुओं में से किसी एक ही हिंसा करूँगा  या फिर इन दो अवसरों पर ही असत्य भाषण या चोरी करूँगा आदि आदि ।

समुच्चय:- जो भी प्राणी मिले उसके साथ हिंसा, असत्य, चोरी आदि वितर्कों को करना

चूँकि प्राणधारियों की संख्या अनगिनत होने से ये वितर्क भी असंख्य होते हैं अतः साधक को इनसे नितांत बचना चाहिए ।

coming soon..
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सूत्र: वितर्का हिंसादयः कृतकारितानुमोदिता लोभक्रोधमोहपूर्वका मृदुमध्याधिमात्रा दुःखाज्ञानानन्तफला इति प्रतिपक्षभावनम्

 

यम नियमों से जो उल्टे भाव हैं

वे सभी बाधाएं वितर्क स्वभाव हैं

लोभ-क्रोध और मोह कारण हैं

बाधाओं का तुम्हें करना निवारण है

अतः लोभ-मोह और क्रोध से 

प्रतिपक्ष भावना के प्रबल बोध से

न वितर्कों में तुम स्वयं फंसो

कोई धक्का दे तो भी न धँसो

समर्थन इनका बिल्कुल न करना

शुभ भावों से साधना की पीड़ा सहना

पीड़ा बाद सदा सृजन हुआ है

योगी ने नव गंतव्य छुआ है।

2 thoughts on “2.34”

  1. Srushti says:

    I think you are the best who explained it properly

    1. admin says:

      Thank you shrishti ji…Pujya swami Ji’s blessings are with us

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