महर्षि ने प्राणायाम को चार भागों में बांटा है । इस सूत्र में तीन प्रकारों को समझाया गया है । ये तीन प्रकार निम्न हैं-
1.बाह्यवृत्ति प्राणायाम:- प्राण को तीव्र वेग से बाहर फेंककर फिर उसे बाहर ही रोक देने की प्रक्रिया को बाह्यवृत्ति प्राणायाम कहते हैं । प्राण वायु को नासिका छिद्रों से बाहर फेंकने को योग की भाषा में रेचक कहते हैं ।
2.आभ्यन्तर वृत्ति प्राणायाम:- प्राणवायु को नासिका से भीतर लेकर फिर उसे भीतर ही रोक देने की प्रक्रिया को आभ्यंतरवृत्ति प्राणायाम कहते हैं । प्राण वायु को नासिका छिद्रों से भीतर लेने को योग की भाषा में पूरक कहते हैं ।
3.स्तम्भवृत्ति प्राणायाम:- जब श्वास प्रश्वास के समय हमारी श्वास जहाँ पर ही होती है ( या तो बाहर होगी या भीतर) उसे वहीँ के वहीँ रोक देने की प्रक्रिया को स्तम्भ वृत्ति प्राणायाम कहते हैं । श्वास को रोकने की प्रक्रिया को कुम्भक कहते हैं । यदि श्वास को बाहर रोककर रखा जाता है तो इसे बाह्य कुम्भक कहते हैं और यदि शरीर के भीतर रोका जाता है तो इसे अन्तः कुम्भक या आभ्यंतर कुम्भक कहते हैं ।
ये तीनों प्राणायाम देश, काल और संख्या पूर्वक किये जाते हैं । अर्थात जब जब ये प्राणायाम किये जायेंगे यह देखा जायेगा कि आपकी प्राण वायु नासिका से कितना आगे तक जा रही है, कितना समय आपको एक प्राणायाम करते हुए लग रहा है और एक प्राणायाम करते हुए सामान्य रूप से आप कितने श्वास प्रश्वास ले सकते हैं । इस प्रकार देश, काल और संख्या से अच्छी प्रकार से नापा हुआ या परीक्षित किया हुआ प्राणायाम दीर्घ और सूक्ष्म या हल्का हो जाता है ।
सूत्र: बाह्याभ्यन्तरस्तम्भवृत्तिर्देशकालसंख्याभिः परिदृष्टो दीर्घसूक्ष्मः
प्राणायाम के भेद चार हैं
स्वस्थ जीवन के ये आधार हैं
सुख शांति समृद्धि के उपाय प्रमुख हैं
बिना इनके तो दुख ही दुख हैं
इसलिए विस्तार से प्रक्रिया को जानो
जान समझकर भाव से पहचानो
यदि ठीक प्रकार से अभ्यास किया तो
परिणाम के ऊपर विश्वास किया तो
जीवन चहुं ओर से संभल जायेगा
योगी तत्क्षण ब्रह्म बल पाएगा
बाह्य – आभ्यांतर और स्तंभ वृत्ति
ये तीन भेद हैं आरंभ की
बाहर सांस छोड़ फिर बाहर ही रखना
बाह्य वृत्ति नाम से इसको समझना
भीतर सांस लेकर अंदर ही रखना
आभ्यंतर वृत्ति नाम से इसे समझना
जिस क्षण सांस जहां पर हो
तत्क्षण सांस वहां पर रोक दो
यह क्रिया स्तंभ वृत्ति कहलाती
प्राणों पर विशेष नियंत्रण लाती
इस प्रकार तीन भेदों को समझाया है
चौथा प्राणायाम अगले सूत्र में बतलाया है
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