भीतर अच्छाई और बुराई दोनों है, अब यह आपका चुनाव है कि तुम किसे अधिक अभिव्यक्त करते हो। चाहो तो अच्छाई से अपना सम्पूर्ण जीवन आप्लावित कर दो या फिर बुराई में जीवन डुबो दो। ऐसा नहीं है कि तुम्हें पता न हो कि अच्छाई क्या है और बुराई क्या है! दोनों का तुम्हें भलीभांति अनुभव है। मैं तो कहता हूँ बहुत गहरा अनुभव है।
अच्छाई और बुराई के बीच तुम न जाने कितनी बार झूले हो, न जाने कितनी बार तुमने बुराई से बचने के लिए कसमें खाई हैं, न जाने तुम कितनी बार प्रायश्चित की आग में झुलसे हो फिर भी तुम्हारे संकल्पों के बीच आये विकल्पों ने तुम्हें फिर वहीं पहुंचाया है जहाँ से तुमने उठने की ठानी थी।
जीवन तुम्हारा जैसे सांप सीढ़ी का खेल हो गया हो। तुमने कभी जीवन को गंभीरता से लिया है भला! खुद से पूछोगे तो पता चलेगा कि कभी नहीं लिया। तुम जीवन में भले ही कुछ पाओ या न पाओ लेकिन अपने को कभी खोने मत दो।
तुम बैठकर सोचो कि जीवन की क्या दशा हुई पड़ी है और किस दिशा में तुम्हारा जीवन जा रहा है। यदि तुम स्वयं के जीवन के बारे में नहीं सोच सकते हो तो तुम्हारी बांकी की सारी सोच व्यर्थ है। अच्छाई और बुराई के बीच झूलती तुम्हारी जिंदगी तुमसे ही गुहार लगा रही है कि उसे बचा लो। जीवन में बहुत कुछ करने को है और जीवन सुखद एहसासों से भरने को है लेकिन तुम्हारी सहभागिता चाहिए, तुम्हारी सक्रिय सहभागिता।
तुम्हारे पल पल की हिस्सेदारी से तुम्हारा जीवन सफल बनेगा।
जीवन का सार है । यह मेरे लिये प्रभु की असीम अनुकंपा है की आज पहली बार इतने गूढ़ रहस्य को इतनी सरलता और स्पष्टता से व्यक्त किया हुआ मेरे सामने उपस्थित किया है।
प्रभु तुम्हारा कोटि कोटि धन्यवादम
धन्यवाद संजय जी, आप अपने जीवन में निरंतर आगे बढ़ते रहें